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________________ तीर्थ का किसी को पता नहीं था किन्तु यहां 14 जिन प्रतिमाएं भूगर्भ से प्राप्त हुई। फिर यहां खोज हुई जिसके परिणामस्वरूप पांच से सात मंजिले सात जिनालय, एक भव्य बावन जिनालय और वर्गाकार भूमि पर एक जैन मंदिर के स्तम्भ, तोरण, जैन मूर्तियां आदि प्राप्त हुई। इन अवशेषों से विदित होता है कि यह तीर्थ पर्याप्त प्राचीन है। 34 संवत् 1427 में निमाड़ की जैनतीर्थ यात्रा पर निकले तीर्थयात्री श्री जयानंद ने अपने प्रवास गीति में इस तीर्थ का उल्लेख इस प्रकार किया है: "मांडवनगोवरि सगसया, पंच ताराउर वरा विंस इग सिंगारि तारणनंदुरी द्वादश परा । हथिनी सग लक्षमणीउर, इक्कसय सुहजिणहरा, भेटिया अणूब जणवए, मुणि जयानंद पवरा ।। लक्खतिय सहस बि पणसय, पणसयस्स सगसाय.. सय इगविंस दुसहसि सयल, दुन्नि सहस कणगमया । गाम गामि भत्तिपरायण, धम्ममम्म सुजाणगा मुणि जयानंद निरक्खिया सबल समणोपासगा।। इस अवतरण से विदित होता है कि 15वीं शताब्दी में जैन श्रावकों के यहां लगभग 2000 घर थे तथा 101 शिखरबंध जैन मंदिर थे। सुकृत सागर में ऐसा उल्लेख मिलता है कि पेथड़ मंत्रीश्वर के पुत्र झांझणकुमार ने मांडवगढ़ से शत्रुंजय का संघ निकाला था जो लक्ष्मणीपुर आया था। कहने का तात्पर्य यही है कि यह तीर्थ चौदहवीं शताब्दी तक पूर्णरूपेण समस्त जैन धर्मावलम्बियों को विदित था । इससे इस तीर्थ की प्राचीनता सिद्ध होती है। इसके अतिरिक्त यहीं एक प्रमाण और है जो इस तीर्थ की प्राचीनता सिद्ध करता है। वह यह है कि यहां एक अभिलेख है जो सं. 1093 वर्ष वैशाख सुदि सप्तम्यां का है इतना ही पढ़ने में आता है किन्तु इससे तीर्थ की प्राचीनता तो प्रमाणित हो ही जाती है। मूलनायक के आसपास नेमिनाथ और श्री मल्लिनाथ की 32 इंच मूर्ति है। दायी ओर महावीर स्वामी की 32 इंच मूर्ति है। ऐसा कहा जाता है कि इस मूर्ति पर सम्प्रति के समय के चिह्न विद्यमान हैं। आदिनाथ की दो प्रतिमाएँ 13 इंच की हैं, जिनमें से एक प्रतिमा पर निम्नलिखित लेख उत्कीर्ण है: “सवंत् 1320 वर्ष माघ सुदि 5 सोम दिने प्राग्वाट जातिय मंत्री गोसल तस्य चि. मंत्री गंगदेव तस्य पत्नी गांगदेवी तस्या पुत्र मंत्री पदम तस्य भार्या गोमति देवी तस्य पुत मं. संभाजीना प्रतिष्ठितं । । " इस तीर्थ को राजा सम्प्रति के समय का प्रमाणित करने का तो प्रयास 98 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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