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________________ जब अकलंक को यह समाचार मिला तो वे राजा हिमशीतल की सभा में गये और वहाँ बौद्ध गुरु से दीर्घ शास्त्रार्थ करके उन्हें पराजित किया, फलस्वरूप अत्यंत उत्साह पूर्वक वहाँ जैन रथ निकला। जैन धर्म की बहुत प्रभावना हुयी। इस प्रकार बौद्ध गुरुओं के आतंक को समाप्त करने के बाद अकलंक ने, अपना ज्ञान जिनवाणी सेवा को समर्पित किया और ऐसी लेखनी चलाई जिससे जैन श्रुत भण्डार की व्यापक और विशिष्ट समृद्धि हुई। उनके मौलिक और टीका ग्रन्थों को बहुत मान्यता मिली। आचार्य अकलंकदेव के सभी ग्रन्थ, जैनदर्शन और जैन न्याय से सम्बन्धित हैं। आपकी प्रमाण व्यवस्था व्याख्या को, परवर्ती आचार्यों ने बहुत सराहा और अपनी रचनाओं में, उनका आदर पूर्वक उल्लेख भी किया है । षट्खण्डागम की धवला टीका के रचयिता, आचार्य वीरसेन ने उनका उल्लेख पूज्यपाद भट्टारक के नाम से करते हुए लिखा है पूज्यपादभट्टारकैरप्यभाणिसामान्यनय-लक्षणमिदमेव दद्यत्थाप्रमाणप्रकाशितार्थप्ररूपकोनयः महापुराण के रचयिता आचार्य जिनसेन ने अकलंकदेव का स्मरण श्रद्धापूर्वक करते हुए लिखा भट्टाकलंक - श्रीपाल - पात्रकेसरिणां गुणाः । विदुषां हृदयारूढ़ा हारायन्तेऽतिनिर्मलाः ॥ ज्ञानार्णव के रचयिता आचार्य शुभचन्द्र ने उनकी पुण्य सरस्वती की प्रशंसा करते हुए लिखा है श्रीमद्भट्टाकलंकस्य पातु पुण्या सरस्वती । अनेकान्तमरुमार्गे चन्द्रलेखायितं यया ॥ वादिराजसूरि ने पार्श्वनाथचरित में उन्हें तर्कभूबल्लभ विशेषण के साथ स्मरण करते हुए लिखा तर्कभूबल्लभो देवः स जयत्यकलंकधीः । जगद्द्रव्यमुषो येन दण्डिताः शाक्यदस्यवः॥ आचार्य अनंतवीर्य ने अकलंकदेव के ग्रंथ गाम्भीर्य की प्रशंसा करते हुए - लिखा Jain Education International देवास्यानन्तवीर्योऽपि पदं व्यक्तुं तु सर्वतः । न जानीतेऽकलंकस्य चित्रमेतद्परं भुवि ॥ स्वरूप देशना विमर्श For Personal & Private Use Only 39 www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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