SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वरूप देशना मेरी दृष्टि में सैद्धान्तिक / व्यवहारिक तौर पर एक ऐसा 'भारती भवन' जहाँ कि वाणी वीणा गुंजन करती हुयी नरभव की सार्थकता सिद्ध करती है। जिनदेशना की ये झंकारे अल्पविवेकी को भी झंकृत किये बिना नहीं रह सकती है। जैनत्व के सिद्धान्तों को अनुभव के यथार्थ धरातल पर प्रस्तुत करना सहज सम्भव नहीं है। फिर भी आचार्य श्री ने किया है जो स्तुत्य कार्य है। तीर्थंकर महावीर के लघुनंदन आचार्य श्री तीर्थंकर की ही प्रतिकृति प्रतीत होते हैं। उनकी समग्रचर्या मूलाचार / भगवती आराधना की प्रयोगशाला है। उनके मनन- चिन्तन को श्रवणकर गुनना आत्मसात करना जीवन की अपूर्व उपलब्धि है। ऐसे आचार्य श्री और उनकी टीकारूप यह स्वरूप सम्बोधन / देशना कृति वंदनीय है । आत्म सुखदर्शायक है। अधिक क्या कहूँ "तजकर सारे वस्त्राभूषण, महावीर की भेषधरा । संतजनों के विचरण से ही, धरती तल है हरा भरा । चरण स्पर्श करते जिसको वह, कंकर भी शंकर लगते । पंचम युग के पूज्य श्री गुरु, हमको तीर्थंकर लगते ॥ इत्यलम् ॥ सविनय नमोऽस्तु - नमोऽस्तु शासन जयवंत हो ॥ बिन्दुं 6 के अन्तर्गत स्वरूपदेशना के सारभूत संदर्भ सूचिकासाधु योगी, वातरसायन अलौकिक हैं। 1. जैन 2. कैसे उद्योगपति बनें हम | 3. वस्तु स्वातन्त्रपना 4. जैनीवृत्ति स्वेच्छाचार विरोधिनी 5. स्वरूप- सादृश्य असितत्वपना 6. कारण कार्य समयसार 7. वृद्ध - बाल - अतिबाल बनना 8. पुण्य पुरुषों के स्मरण से पापों का क्षय 9. वस्तुस्वरूप नयातीत है। 10. स्त्री परिभाषा 11. आश्रम व्यवस्था का निषेध 12. पुण्योदय की प्रबलता/माहात्म्य 13. दान कैसे देना 14. ज्ञान की परिभाषा स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only 243 www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy