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________________ जिनके पास है ऐसे अर्हत भगवान् ही हैं, जिन्होंने चार घतिया कर्मों का क्षय किया है एवं अघातिया कर्मों का क्षय करके सिद्धत्व को प्राप्त करेंगे ऐसे ही परमात्मा हैं। आचार्य भट्ट अकलंक स्वामी ऐसे ही परमात्मा को नमस्कार कर रहे हैं, वह आत्मा को नमस्कार नहीं कर रहे हैं, आत्मा, आत्मा तो है पर परमात्मा नहीं, इसलिए वह आत्मा को नहीं परमात्मा को नमस्कार कर रहे हैं।' ध्यान रखना पाषाण प्रतिमा जब तक अर्हत गुणों से संस्कारित नहीं होती पाषाणवत् ही होती है, आराध्य नहीं, प्रतिष्ठा ग्रंथ भी अप्रतिष्ठित प्रतिमा को अपूज्य ही मानते हैं, फिर फोटो, चित्राम पूज्य कैसे हुए? दूसरों की देखा देखी भगवान, आचार्य, मुनियों की तस्वीरों की पूजा होने लगी है, यहाँ तक कि वेदी पर भी विराजमान करने लगे हैं, इसे आगामी पीढ़ी किस रूप में स्वीकार करेगी, विचार करके सम्यक् क्रिया करो, मिथ्यात्व का पोषण नहीं। __ कुछ लोग आत्मा को सदा शुद्ध मानते हैं, कुछ लोग सदा अशुद्ध ही मानते हैं, आचार्य श्री कहते हैं बद्ध का ही मोक्ष है, मोक्ष का मोक्ष नहीं , पंचास्तिकाय ग्रंथराज के माध्यम से आचार्य श्री ने बताया, इस संसारी जीव के द्वारा ज्ञानावरणादि आठ प्रकार के कर्म की अवस्थाऐं गाँठ रूप में बाँधी हुयी है, उन सबका नाश करके यह जीव अभूतपूर्व, जो कभी नहीं हुआ ऐसा सिद्ध हो जाता है। ईश्वर भी अनादि से मुक्त नहीं है, संसारावस्था में वह कर्म सहित था तभी संसार और मोक्ष अर्थात् आत्मा और परमात्मा की सिद्धि हो सकेगी। 'ज्ञानमूर्तिम्' जो ज्ञान की मूर्ति हैं, अर्थात् जो ज्ञानाकार है, पुरुषाकार हैं, जिस आसन से सिद्धत्व को प्राप्त किया है, किंचित् न्यून होकर उसी (कायोत्सर्ग या पद्मासन) रूप में सिद्ध क्षेत्र में विराजमान हैं। जिनशासन में निर्गुण की वंदना नहीं है, आत्मा तो सगुण है, इसलिए कहते हैं, 'वंदे तद्गुण लब्धये इसलिए हमेशा ध्यान रखना हमारे सिद्ध भगवाम् अशरीरी होकर भी ज्ञानमूर्ति हैं, अनंत ज्ञानादि गुणों से सहित हैं, उनके जैसा बनने के लिए ही हम उनकी आराधना करते हैं। यह मंगलाचरण मंगल है, मंगलमय है, मंगल करने वाला है, मंगल आचरण कराने वाला, संसार से पार उतारने का निर्देशक एवं अरहंत-सिद्ध परमात्मा के प्रति श्रद्धा भक्ति भाव पूर्वक समर्पण कराने वाला है। स्वरूप देशना विमर्श 203 Jain Education International 'For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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