SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दस्फोट कहने वाले भर्तृहरि शब्द द्वैतवादी हैं। जो कुछ सृष्टि की रचना है, जो कुछ ब्रह्म में दिख रहा है, वह सब शब्द रूप है। शब्दरूप है तो शब्द पुद्गल की पर्याय है, तो चेतन भी पुद्गल हो जायेंगे। शब्द आकाश का धर्म है ज्ञानी! आकाश किसी को छोड़ता नहीं, आकाश किसी से छिड़ता नहीं है। ज्ञानी! थोड़ा कठिन नहीं सुनेंगे तो सीखेंगे कैसे? तत्त्वार्थ सूत्र ही तो श्लोकवार्तिक है, तत्त्वार्थ सूत्र ही सर्वार्थसिद्धि है, तत्त्वार्थ सूत्र ही राजवार्तिक है। देखिए तीनों ग्रंथों को। जितनी सरल सर्वार्थसिद्धि हैं, उतनी कठिन राजवार्तिक है और जितनी सरल राजवार्तिक है, उतनी कठिन श्लोक वार्तिक है। ये तीनों ग्रंथ तत्त्वार्थ सूत्र की टीका है। प्रधानता क्या आचार्य अमृतचंद स्वामी ने कहा 'हे स्वामी! आदिनाथ की स्तुति करो।' तो वे कहेंगे'द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म से रहित चिद् रूप चैतन्य भगवत्ता को आपने प्राप्त किया है, इसलिए हे आदीश्वर स्वामी! आपको नमस्कार हो । यदि जिनसेन स्वामी से कहेंगे कि नमस्कार करो आदिनाथ को तो वे कहेंगे चतुर्मुख ब्रह्म से संयुक्त समवसरण में विराजे चारों दिशाओं में आप नजर आ रहे हैं, इसलिए हे स्वामी! आप ही चतुर्मुख ब्रह्म हो, इसलिए आपको नमस्कार हो।' आचार्य समन्तभद्र स्वामी से कहना कि आदिनाथ को नमस्कार करो तो वे कहेगें नित्य एकांत, अनित्य एकांत से शुद्धात्म स्वरूप आत्मा के कालिक ध्रुवत्व की प्राप्ति अन्यथानुपत्ति नित्य स्वरूप, अनित्य स्वरूप मेरी आत्मा युगपत् नित्य-अनित्य का कथन करने वाले हे आदीश्वर स्वामी! आपको मेरा नमस्कार हो। . आचार्य बट्टकेर स्वामी से कहना कि नमस्कार करो तो वे कहेंगे 'हे नाथ! युग के प्रारम्भ में मूलोत्तर गुणों के पालनहार हे आदीश्वर स्वामी! आपको नमस्कार हो।' यदि आचार्य भगवान् नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती से कहें कि नमस्कार करो तो वे कहेंगे 'हे प्रभु! असंख्यात् लोकप्रमाण कर्म प्रकृतियों के समूह को घातने वाले घातिया घातक, अघातिया के पुरूषार्थी घात करने में लगे हैं, ऐसे आदीश्वर स्वामी! आपको नमस्करा हो।' चारों अनुयोगों से नमस्कार किया है, लेकिन वंदनीय एक है और वंदना के भेद अनेक हैं। बोलने का जो वाच्य है उसे पकड़ता है। सम्यग्दृष्टि जीव श्वानवृत्ति में नहीं जीता । वह तो सिंहवृत्ति में जीता है। श्वान को कोई लाठी मारे तो वह लाठी का पकड़ता है। सिंह को लाठी मारे तो वह लाठी वाले को पकड़ता है। वाचक को नहीं, वाच्य भूत पदार्थ को देखना । जो वाच्य भूत पदार्थ है, वह छह द्रव्य के बाहर एक भी नहीं। 154 ternational -स्वरूप देशना विमर्श www.jainelibrary.org Jain Edu For Personal & Private Use Only
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy