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________________ वाला कोई है तो ज्ञानियो ! एक मात्र जैन दर्शन ही है । 10. जो वस्तु स्वरूप है, वह मिश्र में भी अमिश्र है । 11. एक में अनेकत्व है, अनेकत्व में एकत्व है, यही स्याद्वाद है। 12. इन शब्द वर्गणाओं का दुरूपयोग नहीं करना । सम्हाल- सम्हाल कर रखना । 13. . "मूर्तमिव मोक्षमार्गमवाग्विसर्गं वपुषा निरूपयन्तं" निर्ग्रन्थ मुनि का शरीर बिना बोले ही मोक्षमार्ग का उपदेश देता है। 14. सम्यग्दृष्टि जीव भगवान की पूजा करने नहीं आता, पूज्य होने के लिए आता है । 15. 'अक्षयं परमात्मानं ' मैं उस परमात्मा की वन्दना करता हूँ जो अक्षय है। 16. 'न पूजयाऽर्थस्त्वथि वीतरागे, न निन्दयानाथ विवांत - वैरे । ' हे प्रभु आपकी कोई निन्दा करे, तो बैर धारण नहीं करते हो और काई आपकी पूजा करे तो आप प्रसन्न नहीं होते हो, तो मैं आपकी पूजा क्यों करूँ ? तथापि ते पुण्य-गुण-स्मृतिर्नः पुनातु चित्तं दुरिताञ्जनेभ्यः ॥ 57 || दुरितचित्त की पवित्रता के लिए प्रभु आपकी वन्दना करता हूँ। 17. अशरीरी सिद्ध भगवान न तो घोड़े के आकार में हैं, न हाथी के आकार में । अशरीरी सिद्ध भगवान तो पुरूषाकार में हैं। 18. ‘सत् द्रव्य लक्षणं' द्रव्य का लक्षण सत् है । 19. 'प्रसिद्धोधर्मी' धर्मी प्रसिद्ध होता है। 20. महावीर के जीव सिंह का उपादान निर्मल हुआ और उसके लिए दो मुनिराजों की वाणी निमित्त बन गयी और सिंह से महावीर बन गये । 21. आज घर-घर में जैनी तो हैं, परन्तु जैन बहुत कम हैं। 22. कारण समयसार, कार्य समयसार । बिना कारण के कार्य नहीं होता । 23. रक्त पट और श्याम पट, इनसे न मुनियों को दान देना पड़ता है और न अरहन्तो की पूजा करनी पड़ती है न धर्मक्षेत्रों में जाना पड़ता है । 'मूलाचार' में लाल व काले वस्त्र का निषेध है। दोनों कलंक के सूचक हैं। 24. मणि मंत्र-तंत्र बहु होई, मरते न बचावे कोई । 25. 'प्रक्षीण पुण्यं विनश्यति विचारं । 116 Jain Education International For Personal & Private Use Only • स्वरूप देशना विमर्श www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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