SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वमनोविज्ञप्तिगर्भितं श्रीनेमिजिनस्तवनम् • १६१ नाणावरणीय- दंसण-वेअ कम्म, पण - नव-दुह - उत्तर पगइ मम्म । थिइ तीस कोडाकोडि उदहि जिट्ठ, ईयरेणिग बार मुहुत्त दिट्ठ || १३ || जिव वागुरी बांधउ रहइ जीव, तिम मोहणि बद्धउ रहिअ जीव । ठिइ अपर कोडाकोडि सतरि देव, परमेसर अंतमुत्त लेवि || १४ || अडवीस उत्तरपगइ नाह !, इक्किक्कादिइं दुह दुसह जाहं । नवसयपंचाणुभंग जेअ, दिई उदयिनं दुक्ख अणंता तेअ ||१५|| देवाईय चउगइ आउकम्म, जिअ पामई निअ - निअ उदयि जम्म | तीस - तिगहिअ सायर जिट्ठ आय, जहन्न मुहुत्तिई अंति जाइ ||१६|| नामकम्मिइं उत्तरपगइ जोइ, इगसय वलि तिन्नि अ दुन्निगोइ । कोड़ाकोडि ठिइ तीससागराण, बीआ अड अन्तमुहुत्त जाणि ॥१७॥ पंचुत्तरपगई य अंतराय, दाणाई य वीरिअ अंतराय । परमा ठिइ कोडाकोडि तीस, सागर बिअ अंतमुहुत्ति सीस ॥ १८ ॥ भमी काल अणंतु एहं पसाइ, आविउ नरभवि हउं कहकहवि ताय । बहु पुन्न पसाइं अज्ज नाह!, मई दीठउ रेवयगिरिसणाह ॥१९॥ वस्तु : भवह सायरि भवह सायरि अट्ठकम्मे हिं, दुक्ख अणंता इम सहीय, भमीय नाह! तु वल्लह विण दिउ । तत्थ य करिअ पमाय घण बहुअ वार तुह आणभट्ठउ । चिहुं कसाए ओलविउ, चउगइ भव मज्झारि । हिव तूं सामी ओलिखिउ चउगइगमण निवारि ॥२०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004154
Book TitleNeminath Stotra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTirthbhadravijay
PublisherShraman Seva Religious Trust
Publication Year2013
Total Pages360
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy