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________________ दशाश्रुत० छेदसूत्र अन्तर्गत् प्रत सूत्रांक/ गाथांक [१२३] दीप अनुक्रम [१२९] कल्प० ॥ ३४ ॥ “कल्पसूत्रं (बारसासूत्रं) (मूलम्) मूलं- सूत्र [१२३] / गाथा.||-|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ....."कल्प ( बारसा) सूत्रम्" मूलम् दिवसे उवसमित्ति पच्चर, देवाणंदा नामं सा रयणी निरतित्ति पश्च्चइ, अच्चे लवे मुहुत्ते पाणू थोवे सिद्धे नागे करणे सबट्टसिद्धे मुहुत्ते साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागए णं कालगए विइकंते जाव सबदुक्खप्पहीणे ॥ १२३ ॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सबदुक्खप्पहीणे सा णं रयणी बहुहिं देवेहिं देवीहि य ओवयमाणेहि य उप्पयमाणेहि य उज्जोविया आवि हुत्था ॥ १२४ ॥ जं स्यणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सबदुक्खप्पहीणे, सा रयणी बहुहिं देवेहि य देवीहि य ओवयमाणेहिं उप्पयमाणेहि य उप्पिजलगभूआ कहकहगभूआ आवि हुत्था ॥ १२५ ॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सबदुक्खप्पहीणे, तं रयणिं च णं जिट्ठस्स गोअमस्स इंदभूइस्स अणगारस्स अंतेवासिस्स नायए पिज्जबंधणे वुच्छिन्ने, अणंते अणुत्तरे जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने ॥ १२६ ॥ जं स्यणिं च णं समणे ~73~ बारसो ॥ ३४ ॥
SR No.004148
Book TitleKALP Barsa SOOTRA
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages145
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size37 MB
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