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________________ दशाश्रुत छेदसूत्र अन्तर्गत् “कल्पसूत्रं (बारसासूत्र) (मूलम्) ......... मूलं- सूत्र.[११६] / गाथा.||१-२|| ......... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......"कल्प(बारसा)सूत्रम्" मूलम् प्रत सूत्रांक/ गाथांक [११६] इव विप्पमुक्के, भारंडपक्खी इव अप्पमत्ते, कुंजरे इव सोंडीरे, वसहे इव जायथाम, सीहे इव दुइरिसे, मंदरे इवनिक्कंपे, सागरे इव गंभीरे, चंदे इव सोमलेसे, सूरे इव दित्ततेए, जच्चकणगं व जायरूवे, वसुंधरा इव सवफासविसहे, सुहुयहुयासणे इव तेयसा जलंते॥११६॥ इमेसि पयाणं दुन्नि संगहणिगाहाओ-"कंसे संखे जीवे, गगणे वाऊ य सरयसलिले अ। पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारंडे ॥ १॥ कुंजर वसहे : सीहे, नगराया चेव सागर-मखोहे । चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव हूयवहे ॥२॥" नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे-से अपडिबंधे चउविहे पन्नत्ते, तंजहादवओ, खित्तओ, कालओ, भावओ। दवओ णं सचित्ताचित्तमीसेसु दवेसु, खित्तओणं गामे वा नगरे वा अरण्णे वा खित्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा नहे वा, काल १-२ अप्पकंपे १ नेमे तत्र गाथे दीप अनुक्रम [१२०] ~68~
SR No.004148
Book TitleKALP Barsa SOOTRA
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages145
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size37 MB
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