SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 546
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य|+वृत्ति:) चूलिका [१], मूलं [१], / गाथा ||-II, नियुक्ति: [३६७...], भाष्यं [६२...] (४२) दशवैका हारि-वृत्तिः ॥२७॥ १रतिया क्पचूला० प्रत सत्राक रिआ गिहीणं कामभोगा २, भुजो अ साइबहुला मणुस्सा ३, इमे अ मे दुक्खे न चिरकालोवढाई भविस्सई ४, ओमजणपुरकारे ५, वंतस्स य पडिआयणं ६, अहरगइवासोवसंपया ७, दुल्लहे खलु भो! गिहीणं धम्मे गिहवासमज्झे वसंताणं ८, आयके से वहाय होइ ९, संकप्पे से वहाय होइ १०, सोवक्केसे गिहवासे निरुवक्केसे परिआए ११, बंधे गिहवासे मुक्खे परिआए १२, सावजे गिहवासे अणवजे परिआए १३, बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा १४, पत्तेअं पुण्णपावं १५, अणिञ्चे खलु भो! मणुआण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले १६, बहुं च खलु भो! पावं कर्म पगडं १७, पावाणं च खलु भो! कडाणं कम्माणं पुटिव दुच्चिन्नाणं दुप्पडिकंताणं वेइत्ता मुक्खो, नत्थि अवेइत्ता, तवसा वा झोसइत्ता १८ । अट्ठारसमं पयं भवइ । भवइ अ इत्थ सिलोगो'इह खलु भोः प्रबजितेन' इहेति जिनप्रवचने खलुशब्दोऽवधारणे स च भिन्नक्रम इति दर्शयिष्यामः, भो 22% % दीप अनुक्रम [५०६] ॥२७१॥ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[४२], मूल सूत्र-[३] “दशवैकालिक” मूलं एवं हरिभद्रसूरि-विरचिता वृत्ति: ~545~
SR No.004144
Book TitleAagam 42 DASHVAIKAALIK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages577
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size134 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy