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________________ आगम आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः) अध्ययनं [६], मूलं - [गाथा-], नियुक्ति: [१५६१] भाष्यं [२४२...], (४०) प्रत सूत्रांक [सू.] ४मणेणं पायाए कारण य', एते सत्त भगा करणेणं, एवं कारवणेणवि एए चेव सत्त भंगा १४, एवं अणुमोयणेणवि सत्त भंगा २१, अहवा न करेइ न कारवेइ मणसा १ अहवा न करेइन कारवेइ वचसा, २ अहवान करेइ न कारवेइ कारण। | ३ अहवा न करेइन कारवेइ मणसा वयसा ५ अहवान करेइन कारवेइ मणसा कायेणं ५ अहवा न करेइन कारवेइ वयसा काय-1 सा ६ अहवा न करेइ न कारवेइ मणसा वयसा कायसा ७, एते करणकारावणेहिं सत्तभंगा ७ एवं करणाणुमोयणेहिवि | सत्त भंगा ७, एवं कारावणाणुमोयणेहिवि सत्त भंगा, एवं करणकारावणाणुमोयणेहिवि सत्त भंगा ७, एवेते सत्त सत्तभंगाणं एगणपण्णासं विगप्पा भवन्ति, एत्थ इमो एगूणपन्नासइमो विगप्पो-पाणातिवायं न करे न कारवेद करेंतंपि| अन्न न समणुजाणइ मणेणं वायाए कारणंति, एस अंतिमविगप्पो पडिमापडिवन्नस्स समणोवासगस्स तिविहंतिविहेणं | भवतीति, एवं ताव अतीतकाले पडिक्कमंतस्स एगूणपण्णा भवन्ति, एवं पडुपण्णेवि काले संवरेतस्स एगूणपण्णा भवन्ति, एवं अणागएवि काले पच्चक्खायंतस्त एगूणपन्नासा भवन्ति, एवमेता एगूणपण्णासा तिषिण सीयालं सावयसयं भवति सीयालं भंगसयं जस्स विसोहीऍ होति उबलद्धं । सो खलु पञ्चक्खाणे कुसलो सेसा अकुसला उ ॥ १ ॥ एवं पुण पंचहिं अणुचएहिं गुणियं सत्तसयाणि पंचतीसाणि सावयाणं भवन्ति, सीयालं भंगसयं गिहिपञ्चवाणभेयपरिमाणं । जोगत्तियकरणशिवकालतिएणं गुणेयव्व | *॥२॥सीयालं मंगसयं पञ्चक्खाणंमि जस्स उक्लद्ध । सो खलु पञ्चक्खाणे कुसलो सेसा अकुसला य ॥ ३ ॥ सीवालं भंगसयं गिहि पचक्खाणभेयपरिमाणं । तं च विहिणा इमेणं भावेयवं पयत्तेणं ॥ ४ ॥ तिनि तिया तिन्नि दुया तिन्निकिका य हुँति जोगेसुं । तिदुइक दातिदुइ तिदुएगं चेव करणाई ॥ ५॥ पढमे लब्भह एगो सेसेसु पएसु तिय तिय तियंति । दो नव तिय दो नवगा तिगुणिय सीयाल भंग SC- RRORK दीप अनुक्रम [६२..] JanEaintinी मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] “आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति: ~1615~
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
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