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________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [२०२३] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्रांक [२०२३] दीप अनुक्रम [२०२३] सुभग्गामे दरगाहणं जयमाए गीचया ॥३॥ तुबरे कलेय पने गोमहिसे सयरा व हत्थी या आतामणायचे चिय जयणाए जाणगे गहण ॥४॥ पिप्पलगसूतियारिंगणक्सचमतलियपुडगपती य । कनियकनरिसिक्कग संवट्टग लाउए चेष॥५॥ वाहयपेनिसिभियगुलिमाणं अगदसत्यकोस या पाणुपमहकरगं गिण्हह अद्धाणकप्पम्मि ॥ ६॥सीहाजुमा य पुरतो वसभाणू मम्मती समणिति। पंथे सपिय जना पनि जा अदपानी ॥ ॥ स्विमिर माहिही समुदामनिवारणं च निसिए। सारूचिसनिमम बसमा पूर्ण वालिंगे ॥८॥ उपकरणचरितानं विलोषणा सरीरलोयाणागाडे । धम्मकहनिमिण पुनागकोण आगाहे ॥९॥ असिवादिकारणेहि अदागपाजण अणुणानं । उपकरणपुत्रपटिनेहिएण सत्येण गंतच ॥२०३०॥ वताणं असहू कोण तरिन गंतु पादेहि। अपरक्कमो हुताहे तत्रियं तु इमे विमग्गेजा ॥१॥ एगवखुरे य बुखुरे दुपए अणुचंय नह य अगा। अह भदएऽभिजायति | असती अणुसहिमादीहि ...१३४॥२॥ एगखुरा आसानी दुखुरा उहावि दुपय जइरादी। अणुबंधी सकदादी अणुरंग पिसी (सिविय) पोदया ॥३॥ एनेसि पुनह सुगदि जाहतु सिद्धपुतादी प्रसनीय मुडडनो वा लिंगपिवेगेण | कइति तु ॥४॥ आचासियम्मि सत्ये तसेच तगंपि अप्षिणति पुगो। अह भगइ मता संता अयेजाहनि मम एवं ॥५॥ताहे पच्छकडाडी पारेती नेसि असा उखुइडो। लिंगविवर्ग काउं चारेनि जा गतहागं ॥६॥ एवं दुम्सु. रादीवि जपणा जा जत्य सा उ कायदा। मुलायजाणएण अप्पावट्यं तु गायव ॥ ॥ एतेसामनतरं अणगाढालेषणे गिसेविजा। तहाणगावराहे संबट्टियमोऽबराहाणे ॥८॥ संवाहियाचराहे तपोब ठेदो नहेव मूळ था। आयारपकणे जपमाण णिम्माण चरिमम्मि ॥९॥ अदागकप्पो एसो अहुणा जणुपासणाए कप्यं तु। योच्छामि गुरुपएसा अणुमहद्दा सुविहियाणं ॥२०४०॥ अणुवासम्मि उकप्पे पण्णवग पहुच बहुरिहा अत्या। अणुवासियाएं पर्व सुद्धाय नहा अमुदाय ॥१॥ अणुचासन्यो बहहा उडुबासे वसण अहन असिबादी। पढादीचासो चा अहवा अणुवसणमणचासो ॥२॥ बसिउँ पुणोषि बसनी अणुचालिग बसहि सामागी समा। तीपहिगारों एन्य सा हा मुद्धऽमुदा वा 8 ॥३॥ पट्टीसादीहि सगकटमादिएहि नह पेवा होइ असुद्धा वसही मूलगुणे उत्तरगुणे य॥४॥ कालदुवातिरिर्स अपिसुदाच तासु वसमागो। पाचति पायच्चिानं मोनूर्ण कारणमिमेहि ॥५॥ असिने ओमोपरिए रायड़े, माए व आगादे। गेलो उनिमड़े चरित समातिने असनी ॥६॥ बाहिं सात्यऽसि तत्व सियं तेण कालहुयगम्मि। युग्णेविण णिग्गच्छे अणु पच्छाभाष अणुवासी ॥3॥ आलंचणे विसुदे सुत्नदुयं परिहरे पपनेणं। आसन परिभोग भषणा पडिसेबसंकमणे ॥:१३५॥८॥ असिवादीहि वसंते सुदाए वसहीए से साहू । सुदासतीए जलती विसोहिकोडीएं पुरंतु॥५॥ भयणनिय मणितं पुषऽप्यतराऽत्य जे उजे दोसान ने पुत्र सेवे संकमणेऽजी इमा भषणा ॥२०५०॥ अप्पाचहुं नुले जस्थ गुणा तू भविन बहुतरगा। गच्छे गयंताण व तं येष तहि करेजा उ॥१॥ अलिपादिणिहिए पुण अब( पुषऽ)क्रसेपेण संकमे तनो। सत्वं तु पहिच्छतो जड अयोनत्य मुदी उ॥२॥ एनकातरविहणं अणुवासिय जे उ अणुक्से कार्य कालव्याचराहे संबद्यमोचराहाणं ॥३॥ संबनियाचराहे तबो व छेवो तहेच मूल बा। आयारपकप्पे जं पमाण णिम्माण परिमम्मि ॥४॥ अणुवासियाए कप्पो एमेसो चम्णिो समासेग। टिजकपमा उ तत्तो वोच्हामि गुरुवएसेणं ॥५॥ गच्छागुपयाए सुत्तत्वचिसारए व आवरिए। आगाहें पटमसंजत ओवग्गहिए पप्पए ॥ ६॥ गयो जदि हीरेजा आयरिय नाचि वायते कोई । एरिसए आगादे जम्मा उ जा होइ लदी उ॥ ७॥ सो तं न पमाएई पढमनियंठो पुन्यागाद्वीओं। गच्छोवरगाहहेर्ड कारण पकप्पड्डिअणुण्णा ॥८॥ दुपएति साहुसाहुणि नवहतं तु एवं मूलगुणे। मणिया सेवा एसा सीसो पुचाट र हणमो an९॥जह कारणम्मि मणिया मूलगुणेमं तु एव पटिसेपा। तह होज कारणम्मी पडिसेवा उत्तरगुणेचि? ॥२०६०॥ गुरुयतरएमु एवं मूलगुणेषु तु जइ मवेऽणुग्णा। उत्तरगुणसु तत्तो लड्वतरेखें ततोऽणण्णा ॥१॥ ठितकप्पेलो भणिओ अहणा बोच्छामि अडिन कापासलेपपिडितल्थं जह भणियमणतनाणीहि ॥२॥ पत्थे पादग्गहने उकोसजहण्णगम्मि अठिओ उ। ठितमहिते पिसेसो पापितो संपकप्पम्मि ॥३॥ परयाणिय पाषाणि य मझिमतिथंकराण काप भि। बहमोवाणिधि गिन्हा अद्वियकप्पो समस्याओ ॥४॥ मोडगम्यपि वत्थं अट्ठारसपणितरूपग जहणं । एनो य सयसहस्सं उकसमोरी तु णाय ॥५॥ ऊगगजहारसगं वयं पुण साहुणो अणुण्णान। एनो परिन पुण माणुष्णानं भरे वस्र्थ ॥२०१५२॥६॥ जिणचेरा कार्य प्रणा चोच्छामि आणपुचीए। जय जहा निपयति समासतो हा सुगम् ॥ ७॥ जिणधेराणं कप्पो जम्हा उ ठितम्मि अहिए पैसा ठितअहितकापागं जन्हा अंनग्गना) एने।ा जो उ बिसेसो एवं तु समासेण णपरिवारवामि जिणराणं काये जिणकणेता इमं वोच्छ प्रदुयसत्तए नियघाउकगस्स अडबएगदेणं अविहान कालकरणं पुणरावती पविय सिं..१३६।२०७०॥ पिंडसणा उ8 सन उहनि पासणा दुसए। पउ सेजवस्थपाए विष्णते पटकमा होति॥१॥ दोषमादिमा उ सनासु जपणे सेस उपरिमा पंच। अब हाँति छेवे दो दो अपने परम॥२॥ मेहति उरिमामु नत्य अपि पेनु जपणनरिः। बाए। हेशिलामुणगेहति जाति को कालविरिय तु॥३॥ अगाभिन्गहेग गविता गेल्हेति विही उ एस जिणकपे। अहणा उबेरकर्ष वोच्छामि चिहि समासेणं ॥४॥ गहणे पउचिहम्मि चिनिए गहणं नु परमजने। जन पांगवीयरहितं हविज तरमाणए सोही ।।..१३७॥५॥गणं घडबिहनी पत्थं पायं च सेज आहारो। एतेसि असतीए गहर्ण पदमं तु बीयस्स ॥६॥ चितियं पान मानि कि कारण तस्स गहण पदमं तु तेग विण मोडिपडिमा गिहिमायणभोगों हाणी य ॥७॥ अहमा चाउम्हि तू असणादी तत्व होजगहणं तु। तत्स्थ उ चितियं पाणं तस्स उ गहर्ण पदमताएल०१४३॥८॥ असतीय कासुपस्सा तससहिए कंदवीयसहिए वा। किं कारण ? नेण विणा / आसू पागलओ होना ॥१४॥९॥तरमाणों गेहती सुद्ध, जतरो पेहले सह संघरे। संचरंवो उ गण्डतो, पाचति सहाणपहिले ॥२०८०॥ सत्तदुए दसए वा अगठाणेण वा मोमहर्ण। एनो निमातिरिनं गच्छे महगंतु भइयां ॥१॥ पिडेसण पाणेसण समयुगे त हो गाया। दसगं एसणदोसा गहा(हा)गमे दोसा ॥२॥ एतो तिगातिरितं उम्ममउम्पायनेसणायद। भजियति कप्पविली तस्सऽसतीए अमुबंपि एसो उ बेरकप्पो बोच्च अणुपालणाए का अनुपालेति सुविहिया गा पिहिना उ जेणं तु ॥४॥ परियही परिवहतओ यदुनिहो पुणोषि एकेको। उक्सग्गवेतकालापसेण अजाण परिवही।...१३८॥५॥ परिवहिवायं खलु परियट्टी चेक ११.३ पजकत्वमाप्य मुनि दीपरनसागर ~ 43~
SR No.004139
Book TitleAagam 38 B PANCHKALP Bhashya ev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages56
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_panchakalpa_bhashya
File Size20 MB
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