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________________ आगम (१८) प्रत सूत्रांक [ ७,८] दीप अनुक्रम [७,८] “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र- ७ (मूलं+वृत्तिः) वक्षस्कार [१], मूलं [ ७-८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [१८], उपांग सूत्र [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्तिः | यावद् द्वारस्य वर्णको-वर्णनग्रन्थो 'जाव रायहाणी'ति यावद्राजधानीवर्णकश्च जीवाभिगमोपाङ्गोको निरवशेषो बकव्यः, तत्र प्रथमं द्वारवर्णको यथा- 'ईहामिगंउसभतुरगणरमग रविहगवालग किन्नररुरुसरभचम र कुञ्जरवणलयपउमलयभत्तिचित्ते संभुग्गयवरवेइयापरिगयाभिरामे बिज्जाहरजमलजुअलजंतजुत्ते इव अच्चीसहस्समालणीए, रूवगसहस्सकलिए भिसमाणे भिन्भिसमाणे चक्खुहोअणलेसे सुहफासे सस्सिरीयरूवे वण्णओ दारस्स तस्सिमो होइ, तंजहावइरामया णेमा रिट्ठामया पट्ठाणा वेरुलिअरुइलखंभे जायरूवोवचियपवरपंचवण्णमणिरयणकुट्टिमतले हंसगब्भमएलए गोमेज्जमए इंदकीले लोहिअक्खमईओ दारचेडाओ जोईरसामए उत्तरंगे वेरुलिआमया कवाडा वइरामया संधी लोहिअक्खमईओ सूईओ णाणामणिमया समुग्गया वइरामया अग्गठा अग्गलपासाया रययामया आवत्तणपेढिया अंकुत्तरपासए निरंतरिए घणकवाडे भित्तीं चैव भित्तिगुलिया छप्पण्णा तिष्णि होंति गोमाणसीओ तत्तिआओ णाणामणिरयणवालरूवगठीलट्ठि असालभंजिआगे वइरामए कूडे रययामए उस्सेहे सवतवणिज्जमए उहोए णाणामणिरयणजालपंजरमणिवंसगलोहियक्खपडिवंसगरययभोमे अंकामया पक्खा पक्खवाहाओ जोईसामयावंसा | वंसकवेया य रययामईओ पट्टिआओ जायस्वमइओ ओहाडणीओ बहरामइओ उवरिपुच्छणीओ सबसेए रययामयच्छाणे अंकामयकणगकूडतवणिज्जयूभिआए सेए संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरयणिगरपगासे तिलगरयणद्धचंदचि णाणामणिदामालंकिए अंतो वाहिं च सण्हे तवणिज्जवालुआपत्थडे सुहफासे सस्सिरीअरूवे पासाईए ४" Fur Fate & Use Cy ~98~ ৩৬১৩১৬১৩১৩১৩৩
SR No.004118
Book TitleAagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1097
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size264 MB
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