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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [४], ----- ---- मूलं [१०५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१०५] दीप अनुक्रम [१९८] बडादशभासा योजननेति । अथास्य वर्णकसूत्र-'से पांएगा' इत्यादि, सा, नवरं एवमुक्ताभिलापेन यूटयो | व नन्दनवनवकन्यता अणितन्या, कियत्पर्यन्तमित्याह-वन्तदेव मेरुतः पञ्चाशद्योजक क्षेत्रमवगाव यावत्यामा दावतंसकाः शकेशाचबोरिति, बापीनामानि त्विमानि तेवव क्रमेण, सुमनाः १ सौमत्सा २ सौमनांदा सौम-१६ नस्या वा मनोरमा ४ तथा उत्तरकुरुः १ देवकुरुः २ वारिमा ३ सरस्वती ४ वा विशाला १ माघभजा २ अभ-18 यसेना सोहिणी ४ तथा भनोत्तरा १ भद्रा २ सुभद्रा ३ भद्रावती झजवती का । अथ चतुर्थ वर्ना . कहि गं भन्ते ! मन्दरपब्वए पंचगवणे मार्म वणे प०, गो०! सोमणसवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ छत्तीस जोअणसहस्साई उर्दू उत्पत्ता एत्य पं मन्दरे पन्वए सिहरतले पंडगवणे णाम वणे पण्णसे, चत्वारि चउणउए जोयणसए चक्कबालविक्खम्भेणं बढे बळ्याफारसंठाणसंठिए, जे गं मंदरचूलिअं सबओ समन्ता संपरिक्खिताणं चिट्ठद तिणि जोमणसहस्साई एगं च बाबई जोअणसय किचिबिसेसाहिलं परिक्खेवणं, से णं एगाए पलमवरवेइआए एगेण व वणसंडेणं जाव किण्हे देवा भासयवि, पंडगनणय महासभाए एल्यण मंबरमूलिमा काम चूलिभा पण्णत्ता चत्तालीसं जोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं मूले वारस जोभणाई विकसम्भेषं मझे अट्ठ जोअणाई विक्सम्मेमं उम्पि चमरि जोमणाई विक्खम्भेयं मूले साइस्माई सत्तात्तीक जोआणाई परिक्खेवेणं मजो सारेगावं पणवीस जोअण्णाई परिक्खेवणं उप्पि साइरेगाई.वारस जोनागाई परिक्सवेणं मूते विच्छिण्णा महो संक्षिचा पर्षि व्युमा मोपुच्छसंठापसंठिा समवेरुलिआई अच्छा सा में पाए परमवरवेइभए मक अथ पण्डकवनस्य वर्णनं क्रियते ~742~
SR No.004118
Book TitleAagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1097
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size264 MB
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