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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) वक्षस्कार [२], ------------------ ---- मूलं [३३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३३] श्रीजम्बूद्वीपशान्तिचन्द्रीया चिः रवक्षस्कारे | संहननादि निर्वाणगमनंचम.३३ दीप अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पञ्चइए, उसमे से भरहा एग वाससहस्स छउमस्थपरिभायं पाउणित्ता एगं पुषसयसहस्सं वाससहस्सूर्ण केवलिपरिआयं पाउणिता एगं पुखसयसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरिभायं पाउणिता चपरासीई पुखसयसहस्साई सघाउ पालदत्ता जे से हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे माहबहुले, तस्स णं माहबहुलस्स तेरसीपक्खेणं दसदि अणगारसहस्सेहिं सद्धिं संपरिघुड़े अट्ठावयसेलसिहरंसि चोइसमेणं भत्तेणं अपाणएणं संपलिअंकणिसण्ये पुषणहकालसमयसि अभीषणा णक्सत्तेण जोगमुवागएणं सुसमदूसमाए समाए एगूणणवउईईहिं पक्खेहिं सेसेहिं कालगए वीइकते जाव सबदुक्खपहीणे। जं समयं पपं उसमे अरहा कोसलिए कालगए वीइकते समुजाए छिण्णजाइजरामरणबंधणे सिद्धे बुद्धे जाच सबदुक्खप्पहीणे तं समयं च णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो आसणे चलिए, तए णं से सक्के देविंदे देवराया आसणं चलिअं पासह पासित्ता मोहिं पजह २ ता भयवं तित्थयरं ओहिणा आभोण्इ २त्ता एवं बयासी-परिणिन्दुए खलु जंबुरी वीने भरहे वासे उसहे अरहा कोसलिए, तं जीअमेअं तीअपाचुप्पण्णमणागयाणं सकाणं देविंदाणं देवराईणं तिस्थगराणं परिनिव्वाणमहिमं करेत्तए, तं गच्छामि गं आईपि भगवतो तित्थगरस्स परिनिव्वाणमहिमं करेमित्तिकह बंदइ णमसइ २ चा चउरासीईए सामाजिअसाहस्सीहिं वायत्तीसाए तायत्तीसपहिं च उहि लोगपालेहिं जाव चाहिं चइरासीईहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहि अण्णेहि अ बहूर्हि सोहम्मकप्पवासीहि बेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि अ सद्धिं संपरितुडे ताए उकिट्ठाए जाव तिरिअमसंखेजाणं दीवसमुदाणं मझमज्ञण अणेव अट्ठावयपव्वए जेणेव भगवभो तित्थगरस्स सरीरए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता विमणे णिराणंदे असुपुण्णणयणे तित्थपरसरीरयं तिक्युत्तो आवाहिणं पयाहिणं करेइ २ चा पचासण्णे गाइदूरे सुस्सूसमाणे जाव पाजुवासह । तेणं कालेणं तेणं अनुक्रम [४६] 18॥१५६॥ 98292028003 JitennitiniaN ~315~
SR No.004118
Book TitleAagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1097
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size264 MB
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