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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) वक्षस्कार [२], ---- मूलं [२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति: श्रीजम्मू प्रत सूत्रांक न्तिचन्द्रीया वृतिः ॥१३१॥ [२७] दीप पच्छिमे तिभाए ३ जंबुरीवेणं भंते ! दीवे, मासे ओसप्पिणीए सुसमदुस्समाए समार पाममजिमेसु तिभाएसु भरहस्स वासस्स केरि- वक्षस्कारे सए आवारभाषपडोआरे पुच्छा, गोअमा! बहुसमरमणिजे भूमिभागे होस्था, सो व गमो अवो णाणत्तं दो घणुसहस्साई हतीयारक: उर्दू उत्तेणं, सेसि च मणुआणं चउसद्विपिढकरंडुगा चउत्थभत्तस्स आहारत्ये समुप्पाइ ठिई पलिओवर्म एगूणासीई राइंदिआई 18 सारखंति संगोवेंति, जाव देवलोमपरिमाहिआ ण ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो!, सीसे णं भंते ! समाए पच्छिमे निभाए भरहस्स वासस्स केरिसए आधारभावपरीयारे होत्था, गोभमा! बहुसमरमणिजे मृमिभागे होत्या से जहा णामए आलिंगपुक्सरे इवा जाव मणीहिं उवसोभिए, तंजहा-कित्तिमेहिं चेव अकित्तिहिं घेव, तीसे गं भंते! समाए पच्छिमे तिभागे भरहे वासे मणुआणं केरिसए आयारभावपढोआरे होत्था ?, गोअमा ! वेसि मणुआणं छबिहे संधयणे छबिहे मंठाणे बहूणि धणुसयाणि उद्धं उच्चत्तेणं जहण्णेण संखिजाणि वासाणि उक्कोसेणं असंखिज्जाणि वासाणि आउथे पालंति पालित्ता अप्पेगइया णिरयगामी अप्पेगच्या तिरिअगामी अप्पेगड्या मणुरसगामी अप्पेगइया देवगामी अप्पेगइया सिझंति जाव सबनुक्साणमंतं करेंति (सूत्र २७) व्याख्या प्राग्वत् , नवरं परिहायमाणी इत्यत्र स्त्रीलिङ्गनिर्देशः समाविशेषणार्थतेन समा काले इति पदद्वयं पृथक मन्तव्यं, अयमेवाशयः सूत्रकृता 'सा णं समे'त्युत्तरसूत्रे प्रादुश्चके इति, अथास्वा एव विभागप्रदर्शमार्थमाह-'साम' ॥१३॥ मित्यादि, सा सुषमदुःषमा नाम्नी समा-तृतीयारकलक्षणा त्रिधा विमज्यते-विभागीक्रियते, तद्यथा-प्रथमस्तृत्तीची। भागः प्रथमखिभागः मयूरव्यसकादित्वात् पूरणप्रत्ययलोपः, एवमग्रेऽपि, अयं भावा-द्वयोः सागरोपमकोटाकोव्योखि अनुक्रम caeeeeeeee [४०] 000000000 Jimillennition ~265~
SR No.004118
Book TitleAagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1097
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size264 MB
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