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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१८], -------------- उद्देशक: -, ------------- दारं [१५-२२], -------------- मूलं [२४६-२५३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] “प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रज्ञापनाया: मलय.वृत्ती . प्रत सूत्रांक [२४६-२५३] १९सम्यक्वपदं See अचरमो द्विविधोऽनाद्यपर्यवसितः साद्यपर्यवसितश्च, तत्रानादिअपर्यवसितोऽभव्यः, साद्यपर्यवसितः सिद्धः । इति श्रीमलयगिरिविरचितायां प्रज्ञापनावृत्तौ अष्टादशं पदं समाप्तम् ॥ एकोनविंशतितमं सम्यक्त्वपदं प्रारभ्यते ॥ १९ ॥ ॥३९५॥ दीप अनुक्रम [४८७-४९४] तदेवं व्याख्यातमष्टादशं पदं, साम्प्रतमेकोनविंशतितममारभ्यते, अस्य चायमभिसंबन्धः-दहानन्तरपदे काय-18 स्थितिरुक्ता, अत्र तु कस्यां कायस्थितौ कतिविधाः सम्यग्दृष्ट्यादिभेदेन जीवा भवन्तीति चिन्त्यते, तनेदं सूत्रम् जीवा गं भंते ! किं सम्मदिही मिच्छादिही सम्मामिच्छादिट्ठी, गोयमा! जीवा सम्मदिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीवि सम्मामिच्छादिट्ठीवि । एवं नेरइयादि । असुरकुमारादि एवं चेव जाव चणियकुमारा | पुढवीकाइया णं पुच्छा, गोयमा ! पुढवीकाइया णो सम्मदिही मिच्छादिट्ठी णो सम्मामिच्छादिही, एवं जाच वणस्सइकाइया । बेईदियाणं पुच्छा, गोयमा । बेइंदिया सम्मदिही मिच्छादिट्ठी णो सम्मामिच्छादिट्टी, एवं जाव चरिंदिया, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा वाणमंतरजोइसियवेमाणिया य सम्मदिट्ठीवि मिच्छादिहीवि सम्मामिच्छादिहीवि, सिद्धा णं पुच्छा, गोयमा ! सिद्धा सम्मदिही, णो मिच्छादिही णो सम्मामिच्छादिट्ठी । (सूत्र २५४) पनवणाभगवईए सम्मचपदं समर्च ॥ १९ ॥ sesese ॥३९५॥ अत्र पद (१८) “कायस्थिति" परिसमाप्तम् अथ पद (१९) “सम्यक्त्व" आरब्धम् ~ 794 ~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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