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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ----- ------------ उद्देशक: [(वैमानिक)-१], - -------- मूलं [२०८ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२०८] +%E5% दीप अनुक्रम 'हस्सीओ पन्नताओ बाहिरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ, अभितरियाए परिसाए अद्धसोलस सागरोवमाई पंच पलिओवमाई मज्झिमियाए अद्धसोलस सागरोवमाई चत्तारि पलिओवमाई बाहिरियाए अद्धसोलस सागरोवमाई तिषिण पलिओवमाइं अट्ठो सो चेव ॥ सहस्सारे पुच्छा जाव अभितरियाए परिसाए पंच देवसया मज्झिमियाए परि० एगा देवसाहस्सी वाहिरियाए दो देवसाहस्सीओ पन्नत्ता ठिती अभितरियाए अट्ठारस सागरोयमाई सत्त पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता एवं मज्झिमियाए अट्ठारस छप्पलिओवमाई बाहिरियाए अट्ठारस सागरोवमाइं पंच पलिओषमाई अट्ठो सो चेव ॥ आणयपाणयस्सवि पुच्छा जाय तओ परिसाओ णवरि अभितरियाए अट्ठाइजा देवसया मज्झिमियाए पंच देवसया बाहिरियाए एगा देवसाहस्सी ठिती अम्भितरियाए एगणवीस सागरोवमाई पंच य पलिओवमाई एवं मजिस एगोणवीस सागरोवमाई चत्तारि य पलिओवमाई बाहिरियाए परिसाए एगूणवीसं सागरोवमाइं तिषिण य पलिओबमाई ठिती अट्ठो सो चेव ॥ कहिणं भंते! आरणअनुयाणं देवाणं तहेव अचुए सपरिवारे जाव विहरति, अनुयस्स णं देविंदस्स तओ परिसाओ पष्णताओ अम्भितरपरि० देवाणं पणवीस सयं मज्झिम० अढाइजा सया वाहिरय. पंचसया अभितरियाए एकवीसं सागरोवमा सत्त य पलिओवमाई मज्झि० एकवीससागर० छप्पलि बाहिर एकवीसं सागरो [३२५] C4KOSH ~782~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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