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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ----------- उद्देशक: [(विप्-समुद्र)], --------- मूलं [१८०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक श्रीजीवाजीवाभि मलयगिरीयावृत्तिः। [१८०] ॥३४८॥ जोयणसहस्साई दारंतरं च पउमवर वणसंडे पएसा जीचा अट्ठो गोयमा! वारुणोदस्स णं समुद्दस्स उदए से जहा नामए चंदप्पभाइ वा मणिसिलागाइ वा घरसीधुवरवारुणीह या पसासवेइ वा पुपकासवेइ वा चोयासवेइ वा फलासवेइ वा महुमेराइ वा जातिप्पसमाइ वा खार सारेइ वा मुद्दियासारेर वा कापिसायणाइ वा सुपक्कग्वोयरसेह वा पभूतसंभारसंचिता पोसमाससतभिसयजोगवत्तिता निरुवहतविसिट्टदिन्नकालोक्यारा सुधोता उधोसग (मयपत्ता) अट्टपिट्टपुट्ठा (पिट्ठ निहिजा) [मुखईतवरकिमदिषणकद्दमा कोपसन्ना अच्छा वरवारुणी अतिरसा जंबूफलपुट्ठवन्ना सुजाता ईसिउट्ठावलंबिणी अहियमधुरपेजा ईसासिरत्तणेसा कोमलकबोलकरणी जाव आसादिता विसदिता अणिहुयसंलावकरणहरिसपीतिजणणी संतोसततषियोकहावधिभमविलासबेल्लहलगमणकरणी विरणमधियसत्तजणणी य होति संगामदेसकालेकयरणसमरपसरकरणी कढियाणविलुपयतिहिययाण मउयकरणी य होति उववेसिता समाणा गर्ति स्थलावेति य सयलंमिवि सुभासवुप्पालिया समरभग्गवणोसहयारसुरभिरसदीविया सुगंधा आसायणिजा विस्सायणिजा पीणणिज्जा दप्पणिज्जा मयणिज्जा सम्विदियगातपल्हायणिवा] आसला मांसला पेसला (ईसी ओढावलंबिणी ईसी तंवच्छिकरणी ईसी चोच्छेया कटुआ) वणेणं उधवेया गंधेणं उववेया रसेणं उववेया फासेणं उववेया, भवे एयारूवे सिया?, गोयमा! प्रतिपत्ती पुष्करवरपुष्करोदवरुणवरवरुणोदा उद्देशः२ सू०१८० । दीप अनुक्रम [२८९-२९१] I ॥३४८॥ अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-विप्-समुद्राधिकार: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- २' अत्र २ इति निरर्थकम् ~699~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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