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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ----- ------------ उद्देशकः [(द्विप्-समुद्र)], --------- मूलं [१४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१४१] श्रीजीवाजीवाभि० मलयगिरीयावृत्तिः ॥२४॥ प्रतिपत्ती है| तिर्यगधि कारे विजयदेवाभिपेकः उद्देशः२ %A5% सू०१४१ दीप अनुक्रम [१७९] वासंति, अप्पेगतिया देवा णिहतरयं णहरयं भट्टरयं पसंतरयं उवसंतरयं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि सभितरबाहिरियं आसितसम्मजितोवलितं सित्तसुइसम्मट्टरत्यंतरावणवीहियं करति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि मंचातिमंचकलित करेति, अप्पेगतिया देवा विजय रायहाणिं णाणाविहरागरंजियऊसियजयविजयवेजयन्तीपडागातिपडागमंडितं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणिं लाउल्लोइयमहियं करैति, अप्पेगतिया देवा विजयं गोसीससरसरत्तचंदणदहरदिपणपंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजय उवचियचंदणकलसं चंदणघडमुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं आसत्तोसत्तविपुलबद्वग्धारितमल्लदामकलावं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं पंचवण्णसरससुरभिमुकपुष्फपुंजोययारकलितं करेति, अप्पेगइया देवा विजयं कालागुरुपवरकुंदुरुकतुरुकधूबडझंतमघमघेतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवहिभूयं करंति, अप्पेगइया देवा हिरणवासं वासंति, अप्पेगइया देवा सुवणवासं वासंति, अप्पेगइया देवा एवं रयणवासं वइरवासं पुष्फवासं मल्लवासं गंधवासं चुपणवासं वत्धवासं आहरणवासं, अप्पेगड्या देवा हिरण्णविधि भाइंति, एवं सुवण्णविधि रयणविधि वतिरविधि पुप्फविधि मल्लविधि चुण्णविधि गंधविधि बत्थविधि भाइंति आभरणविधि ॥ अप्पेगतिया देवा दुयं णविधि उबदसेंति अप्पेगतिया ॥२४ ॥ अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-विप्-समुद्राधिकार: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- २' अत्र २ इति निरर्थकम् विजयदेव-अधिकार: ~483~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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