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________________ आगम “राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) (१३) --------- मूलं [३४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्तिः पन्नवरदि काव प्रत सूत्रांक मू०१४ [३४] दीप अनुक्रम [३४] श्रीराजमनीणा पत्रमाणा ओरालेणं मणुनेण मणहरेण कण्णमणणिबुडकरेणं सद्देणं ते पदेसे सवतो समंता आपूरेमाणा सिरीए उबसोमेमलयगिरी माणा चिट्ठति, तीसे पउमवरवेइयाए तत्थर देसे वहिर हयसंघाडा नरसंघाडा किंनरसंघाडा किंपुरिससंघाडा महोरगसंघाद्या या वृत्तिः गंधवसंघाडा उसभसंघादा सवरयणामया अच्छा जाव पडिरूबा, एवं पंतीओवि बीहीमोवि भिहुणाई, तीसे णं पउमवरवेइयाए ॥३॥ सातत्थर देसे तरि बहुयाओ पउमलयामो णागलयाओ असोगल याओ चंपगलयाओ वणळयाओ वासंतियलयाओ अइमुत्त गलयामओ कुंदलयाओ सामलयाभो निच्च कुसुमियाओ निच मालियाओ निचं लबइयाओ निच्चे थवइयाओ णिचं गुलइयाओ निच गोच्छियाओ णिच्चं जमलियाओ निचं जुलियाओ निश्च विणमियाओ निच्च पणमियामो निच सुविभत्तपडिमंजरिवडंसगधरीओ निचं कुसुमियमउलियलबइयथवइयगुलइयगोच्छियजमलियजुयलियविणमियपणमियमुविभत्तपडिमंजरिवडिंसगधरीओ सत्वरयणामईओ अच्छा जाच पडिरूवाओ' इति, अस्य व्याख्या-'सा' एवं स्वरूपा 'ण' मिति वाक्यालझरे पावरवेदिका तत्रर प्रदेशे एकैकेन हेमजालेन-सर्वात्मना हेममयेन लम्बमानेन दामसमूहेन एकैकैन गवाक्षजालेन-गवाक्षाकृतिरत्नविशेषदामसमूहेन एकैकेन किङ्किणीजालेन, किङ्किण्या-क्षुद्रघण्टिकाः, एकैकेन घण्टाजालेन-किङ्किण्यपेक्षया किंचिन्मइल्यो घण्टा घण्टाः, तथा एकैकेन मुक्ताजालेन-मुक्ताफलमयेन दामसमूहेन एकैकन पणिजालेन-मणिमयेन दामसमूहेन एकै| केन कनकजालेन-कनका-पोतरूपः मुवर्णविशेषः तन्मयेन दामसमृहेन एवमेकैकेन रत्नजालेन एकैकेन पद्मजालेन सर्वरत्नमयपद्यात्मकेन दामसमूहेन सर्वतः सर्वासु दिक्षु समन्तत:-सर्वासु विदिक्षु परिक्षिप्ता-च्याप्ता, एतानि च दामसमूहरूपाणि हेमजालादीनि जालानि लम्बमानानि येदितव्यानि, तथा चाहते णं जाला' इत्यादि, तानि सूत्रे पुंस्त्वनिईशः पाकृत 12 ॥८३॥ HRPAPER ~169~
SR No.004113
Book TitleAagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages304
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size66 MB
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