SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मूलं [१२०-१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: टटटहरदकरलालहर मवेयालीए ममं पडिवालेमाणा चिटुंतु, तते णं से दूर जाव भणति, पडिवालेमाणा चिट्ठह, तेवि जाव चिट्ठति, तते णं से कण्हे वासुदेवे कोटुंबियपुरिसे सद्दावेइ२त्ता एवं व०-गच्छह णं तुम्भे देवा! सन्नाहियं भेरि ताडेह, तेवि तालेंति, तते णं तीसे सण्णाहियाए भेरीए सदं सोचा समुहविजयपामोक्खा दसदसारा जाच छप्पणं बलवयसाहस्सीओ सन्नद्धबद्ध जाव गहियाउहपहरणा अप्पेगतिया हयगया गयगया जाव वग्गुरापरिक्खित्ता जेणेव सभा सुधम्मा जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव २ करयल जाव बद्धवावेंति, तते गं कण्हे वासुदेवे हथिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं० सेयवर हयगय महया भष्टचडगरपहकरेणं बारवती गयरी मज्झमज्झेणं णिग्गच्छति, जेणेव पुरथिमवेयाली तेणेव उवा०२ पंचहि पंडवेहिं सद्धिं एगपओ मिलइ २ खंधावारणिवेसं करेति २ पोसहसाल अणुपविसति २ सुट्टियं देवं मणसि करेमाणे २ चिट्ठति, तते ण कण्हस्स वासुदेवस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि मुहिओ आगतो, भण देवा! जंमए काय, तते णं से कण्हे वासुदेव मुट्ठियं एवं व०-एवं खलु देवा०1 दोवती देवी जाव पउमनाभस्स भवर्णसि साहरिया तण्णं तुम देवामम पंचहिं पंडवेहिं सद्धिं अप्पछट्ठस्स छण्इं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियरेहि, जणं अहं अमरकंकारायहाणी दोवतीए कूवं गच्छामि, तते णं से सुटिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं बयासी-किण्हं देवा! जहा चेव पउमणाभस्स रन्नो पुषसंगतिएणं देवेणं दोवती जाव संहरिया तहा चेव दोवर्ति देविं धायतीसंहाओ दीवाओ भार ~ 436~
SR No.004106
Book TitleAagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages512
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size109 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy