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________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१६], ----------------- मूलं [१२०-१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: असण ४ पुप्फवस्थेणं सकारेति सम्माणेति जाव पडिविसज्जेति, तते णं ताई वासुदेवपामोक्खाई बहुहिं जाव पडिगयाति(सूत्रं१२१) तते ण ते पंच पंडवा दोवतीए देवीए सद्धिं अंतो अंतेउरपरियाल सर्द्धि कलाकर्तिवारंवारेणं ओरालाति भोगभोगाई जाव विहरति, तते णं से पंह राया अन्नया कयाई पंचहि पंडवेहिं कोंतीए देवीए दोवतीए देवीए यसद्धिं अंतो अंतेउरपरियाल सद्धिं संपरिखुडे सीहासणवरगते यावि विहरति, इमं चणं कच्छल्लणारए दंसणेणं अइभदए विणीए अंतो २ य कस्लुसहियए मज्झत्थोवस्थिए य अल्लीणसोमपियदंसणे सुरूवे अमइलसगलपरिहिए कालमियचम्मउत्तरासंगरइयवत्थे दण्डकमण्डलुहत्थे जडामउडदित्तसिरए जन्नोवइयगणेत्तियमुंजमहलबागलधरे हत्थकयकच्छभीए पियगंधवे धरणिगोयरप्पहाणे संवरणावरणओवयणउप्पयणिलेसणीसु य संकामणिअभिओगपण्णत्तिगमणीथंभणीसुय बहुसु विजाहरीसु विजासु विस्सुयजसे इहे रामस्स य केसवस्स य पज्जुन्नपईवसंबअनिरुद्धणिसहउम्मुयसारणगयसुमुहदुम्मुहातीण जायवाणं अट्ठाण कुमारकोडीणं हिययदइए संथवए कलहजुद्धको. लाहलप्पिए भंडणामिलासी यहुसु य समरसयसंपराएसुदंसणरए समंतओ कलहसदक्खिणं अणुगवेसमाणे असमाहिकरे दसारवरवीरपुरिसतिलोकबलवगाणं आमंतेऊण तं भगवती एकमणि गगणगमणदफई उप्पइओ गगणमभिलंघयंतो गामागरनगरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपदणसंवाहसहस्समंडियं थिमियमेइणीतलं वसुहं ओलोईतो रम्मं हथिणारं उवागए पंडुरायभवणंसि अइवेगेण समो. ~428~
SR No.004106
Book TitleAagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages512
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size109 MB
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