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________________ आगम (०५) "भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [१], मूलं [१६], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत -% सत्रांक [१६] व्याख्या|| संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नता, तंजहा-संजया य असंजया य, तत्थ ण जेते संजया ते दुविहा[४|१ शतके प्रज्ञप्तिः पण्णता, तंजहा-पमत्तसंजया य अप्पमत्तसंजया य, तत्थ णं जे ते अप्पमत्तसंजया ते णं नो आयारंभाट आत्मारअभयदेवी |म्भासू १६ या वृत्तिः सानो परारंभा जाव अणारंभा, तत्थ जे ते पमत्तसंजया ते सुहं जोगं पहुच नो आयारंभा नो परारंभा | ||जाच अणारंभा, असुभ जोगं पडुच्च आयारंभावि जाव नो अणारंभा, तत्थ ण जे ते असंजया ते अविरतिं| पडच आयारंभावि जाच नो अणारंभा, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं बुच्चह-अस्थगइया जीवा जाव अणारंभा॥ | नेरल्याणं भंते ! किं आयारंभा परारंभा तदुभयारंभा अणारंभा,गोयमा ! नेरइया आयारंभावि जाव नो | अणारंभा, से केणद्वेणं भन्ते एवं बुच्चा , गोयमा ! अविरतिं पहुच, से तेणटेणं जाव नो अणारंभा, एवं जाव असुरकुमाराणवि जाच पंचिंदियतिरिक्खजोणिया, मणुस्सा जहा जीवा, नवरं सिद्धविरहिया भाणियव्वा, चाणमंतरा जाव वेमाणिया जहा नेरइया । सलेस्सा जहा ओहिया, कण्हलेसस्स नीललेसस्स काउ| लेसस्स जहा ओहिया जीवा, नवरं पमत्तअप्पमत्ता न भाणियच्या, तेउलेसस्स पम्हलेसस्स सुकलेसस्स जहा ओहिया जीवा, नवरं सिद्धा न भाणियया ॥ (सू०१६) R ॥३१॥ __ आरम्भो-जीवोपघातः, उपद्रवणमित्यर्थः, सामान्येन वाऽऽश्रवद्वारप्रवृत्तिः, तत्र चास्मानमारभन्ते आत्मना वा स्वयमारभन्त इत्यात्मारम्भाः , तथा परमारभन्ते परेण वाऽऽरम्भयतीति परारम्भाः , तदुभयम्-आत्मपररूपं, तदुभयेन | वाऽऽरम्भन्त इति तदुभयारम्भाः, आत्मपरोभयारम्भवार्जितास्त्वनारम्भा इति प्रश्ना, अनोत्तरं स्फुटमेव, नवरम् । दीप अनुक्रम [२२] 4C0-१६- -- - SAREaratunmantational parasaram.org ~68~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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