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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [१३२ १३३] दीप अनुक्रम [१५८ -१५९] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्ति:) शतक [३], वर्ग [-], अंतर् शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [१३२-१३३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः झोसित्ता तीस भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किचा ईसाने कप्पे सरांसि विमाणंसि जा चैव तीसए वत्तच्वया ता सन्वेव अपरिसेसा कुरुदत्तपुतेवि, नवरं सातिरेंगे दो केवलकप्पे जंबूदीवे २, अवसेसं तं चेव, एवं सामाणियतायत्ती लोगपाल अग्गमहिसीणं जाव एस णं गोयमा ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरन्नो एवं एंगमेगाए अग्गमहिसीए देवीए अयमेपारूवे विसए बिसयमेन्ते बुझ्ए नो चेव णं संपत्तीए विवा३ ॥ ( सृ० १३२ ) ॥ एवं सर्णकुमारेवि, नवरं चत्तारि केवलकप्पे जंबूही वे दीवे अदुत्तरं च णं तिरियमसंखेज्जे, एवं सामाणियताय तीस लोगपाल अग्गमहिसीणं असंखेज्जे दीवसमुद्दे सच्चे विध्वंति, सणकुमाराओ आरद्वा उवरिल्ला लोगपाला सव्वेवि असंखेजे दीवसमुद्दे विउव्विति, एवं माहिंदेवि, नवरं सातिरेगे चत्तारि केवलकप्पे जंबूदीवे २, एवं बंभलोएवि, नवरं अट्ठ केवलकप्पे, एवं लंतएवि, नवरं सातिरेगे अह केवलकप्पे, महासुक्के सोलस केवलकप्पे, सहसारे सातिरंगे सोलस, एवं पाणएवि, नवरं वत्तीसं केवल ०, एवं अच्चुएवि० नवरं सातिरेगे यत्तीसं केवलकप्पे जंबूदीवे २ अन्नं तं चेष, सेवं भंते २ ति तचे गोयमे वायुभूती अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नम॑सति जाव विहरति । तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कपाई मोयाओ नगरीओ नंदणाओ चेतियाओ पडिनिक्खमइ २ बहिया जणवयविहारं विहरइ || (सू० १३३ ) | 'उ बहाओ परिशिय'त्ति प्रगृह्य विधायेत्यर्थः । 'एवं सणकुमारेवि'त्ति, अनेनेदं सूचितम् -'सणकुमारे णं Education International For Parts Only ~324~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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