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________________ आगम (०५) "भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [९४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [९४] ॥१२६॥ व्याख्या- छामि जीवजीवेणं चिट्ठामि जाव गिलामि जाव एवामेव अहंपि ससई गच्छामि ससई चिट्ठामि तं अस्थि २ शतके प्रज्ञप्तिःता मे उठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे तंजाव ता मे अस्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसकार-1 | उद्देशः१ अभयदेवीपरकमे जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरह ताव ता मे सेयं । स्कन्दकयावृत्तिः१ |कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिल्लियंमि अहापांडुरे पभाए रत्तासोयप्पकासकिंसुय स्थानशन सू ९४ द सुपमुहगुंजारागसरिसे कमलागरसंडबोहए उठ्ठियंमि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेपसा जलते समणं| भगवं महावीरं वंदित्ता जाव पजुवासित्ता समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाणि आरोवेत्ता समणा य समणीओ य खामेत्ता तहास्वेहिं धेरेहिं कडाईहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं | सणियं २ दुरूहित्ता मेघघणसन्निगासं देवसन्निवातं पुढवीसिलावद्दयं पडिलेहित्ता दन्भसंथारयं संघरित्ता दब्भसंथारोवगयस्स सलेहणाजोसणाजूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अण-| वकखमाणस्स विहरितात्तिक एवं संपेहेइ २त्ता कल्लं पाउपभायाए रयणीए जाव जलंते जेणेव समणे ॥१२६॥ भग जाव पजुवासति, खंदयाइ समणे भगवं महावीरे खंदयं अणगारं एवं चयासी-से नूणं तव खंदया! || पुव्यरत्तावरत्तकालसजाव जागरमाणस्स इमेयारूबे अम्भत्थिए जाव समुप्पजिस्था-एवं खलु अहं हमेणं एपारवेणं तवेणं ओरालेणं विपुलेणं तं चेव जाव कालं अणवखमाणस्स विहरित्तएत्तिकहु एवं संपेहेति २ SCRECA दीप % अनुक्रम [११५] % % REESEX स्कंदक (खंधक) चरित्र ~ 257~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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