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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२५], वर्ग [-], अंतर-शतक -1, उद्देशक [८-१२], मूलं [८०५-८०९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [८०५-८०९] व्याख्या- प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः२|| ॥९२७॥ दीप अनुक्रम [९७०-९७४] याउयं पकरेन्ति, तेसि णं भंते जीवाणं कहं गती पवत्तइ ?, गोयमा ! आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं, २५ शतके एवं खलु तेसिं जीवाणं गती पवत्तति,ते णं भंते ! जीवा किं आयड्डीए उववर्जति परिडीए उवव०, गोयमा! हा उद्देशः ८आइडीए उवव० नो परिड्डीए उवव० ते णं भंते ! जीवा किं आयकम्मुणा उवव० परकम्मुणा उवव० ?, गोय ९-१० ११-१२ मा आयकम्मुणा उवव० नो परकम्मुणा उवव०, ते णं भंते ! जीवा किं आयप्पयोगेणं उचथ० परप्पयोगेणं नारकमउवव०१, गोयमा आयप्पयोगेणं उववजंति नो परप्पयोगेणं उवव० । असुरकुमारा णं भंते! कहं उवव व्यादीनाअंति, जहा नेरतिया तहेव निरवसेसं जाव नो परप्पयोगेणं उववजंति एवं एगिदियवजा जाव वेमाणिया, मुत्पत्तिरीएगिंदिया तं चेव नवरं च उसमइओ विग्गहो, सेसं तं चेव, सेवं भंते ! २त्ति जाब विहरइ ।। (सूत्रं ८०५) तिसू |पंचवीसंइमस्स अट्ठमो॥२५॥८॥ भवसिद्धियनेरइया भंते! कहं उवव०१, गोयमा! से जहानामए| पवए पवमाणे अवसेसं तं चेव जाव वेमाणिए, सेवं भंते!२त्ति ॥ (सूत्रं ८०६) ॥२५॥९॥ अभवसिद्धियनेरइया णं भंते! कहं उवव०१, गोयमा! से जहानामए पवए परमाणे अवसेसं तं चेव एवं जाव वेमाणिए, सेवं भंते २त्ति ॥ (८०७) ॥२५॥१०॥ सम्मदिहिनेरइया गंभंते! कहं उवव.?, गोयमा! से जहानामए) पवए पवमाणे अवसेसंतं चेव एवं एगिदियवजं जाव वेमाणिया, सेवं भंते!२त्ति ॥ (सूत्रं ८०८)॥२५॥११॥ | मिच्छदिहिनेरझ्या णं भंते! कहं उवव.?, गोयमा ! से जहानामए-पवए पबमाणे अवसेसं तं चेव एवं जाव बेमाणिए, सेवं भंते २त्ति ॥ (सूत्रं ८०९)॥२५१२॥ पंचवीसतिम सयं सम्मत्तं ॥२५॥ ~ 1858~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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