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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [४], मूलं [७३६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [७३६] समयात्मकत्वादवस्थितत्वाचासौ कृतयुग्मसमयस्थितिक एव, नारकादिस्तु विचित्रसमयस्थितिकत्वात्कदाचिच्चतुरमः कदाचिदन्यत्रितयवतीति । 'जीवा ण'मित्यादि, बहुत्वे जीवा ओघतो विधानतश्च चतुरग्रसमयस्थितिका एव अनाद्यनन्तस्वेनानन्तसमयस्थितिकत्वात्तेषां, नारकादयः पुनर्विचित्रसमयस्थितिकाः, तेषां च सर्वेषां स्थितिसमयमीलने चतुष्कापहारे चौघादेशेन स्यात् कृतयुग्मसमयस्थितिका इत्यादि, विधानतस्तु युगपच्चतुर्विधा अपि ॥ अथ भावतो जीवादि| तथैव प्ररूप्यते जीवे णं भंते ! कालवन्नपज्जवेहिं किं कडजुम्मे ? पुच्छा, गोयमा ! जीवपएसे पहुंच णो कडजुम्मे जाव णो कलियोगे सरीरपएसे पडच सिय कडजुम्मे जाव सिय कलियोगे, एवं जाव चेमाणिए, सिद्धो ण चेव पुच्छिजति । जीवा णं भंते ! कालवन्नपज्जवेहिं पुच्छा, गोयमा ! जीवपएसे पड्डुच ओघादेसेणवि विहाणादेसेणवि णो कडजुम्मा जाव णो कलिओगा, सरीरपएसे पडुच्च ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा, विहाणादेसेणं कडजुम्मावि जाव कलि०, एवं जाव बेमा०, एवं नीलवन्नपज्जवेहिं दंडओ भा० एगत्तपुहत्तेणं एवं जाव लुबखफासपजहिं ॥ जीवे णं भंते ! आभिणिवोहियणाणपजवेहिं किं करजुम्मे पुछा, गोयमा।| सिय कडजुम्मे जाथ सिय कलियोगे, एवं एगिदियवज जाच वेमाणिए । जीवा गं भंते ! आभिणियोहियणा-] णपज्जवेहिं पुछा, गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलि योगा, विहाणादेसेणं कडजम्माधि जाव कलियोगावि, एवं एगिदियवज्ज जाव वेमाणिया, एवं सुयणाणपज्जवेहिवि, ओहिणाणपज्जवेहिचि एवं दीप अनुक्रम [८८३] ~ 1755~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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