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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [५२] दीप अनुक्रम [७] ““भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः ) शतक [१], वर्ग [-], अंतर् शतक [-] उद्देशक [६], मूलं [ ५२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित व्याख्या प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः १ ॥ ८० ॥ आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः दर्शनं शस्यमिव विविधन्यथानिबन्धनत्वान्मिथ्यादर्शनशल्यमिति ॥ एवं तावद्गौतमद्वारेण कर्म प्ररूपितं तच प्रवाहत: शाश्वतमित्यतः शाश्वतानेव लोकादिभावान् रोहकाभिधानमुनिपुङ्गवहारेण प्ररूपयितुं प्रस्तावयन्नाह तेनं काणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी रोहे नामं अणगारे पगइभदए पग| इमउए पगविणीए पगइउवसंते पाइपको हमाणमायालोमे मिउमहवसंपन्ने अल्लीणे भद्दए विणीए सम णस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उजाणू अहोसिरे झाणकोट्टोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावे माणे विहरइ, तए णं से रोहे नामं अणगारे जायसहे जव पज्जुवासमाणे एवं वदासी पुवि भंते! लोए पच्छा अलोए पुचि अलोए पच्छा लोए ?, रोहा ! लोए य अलोए य पुविपेते पच्छापते दोषि एए सासया भावा, अणाणुपुथ्वी एसा रोहा !। पुव्वि भंते ! जीवा पच्छा अजीवा पुब्विं अजीवा पच्छा जीवा ?, जहेब लोए य अलोए य तहेव जीवा य अजीवा य, एवं भवसिन्कीया य अभवसिद्धीया य सिद्धी असिद्धी सिद्धा असिजा, पुवि भंते ! अंडर पच्छा कुकुडी पुव्विं कुकुटी पच्छा अंडए ?, रोहा ! से णं अंडर कओ !, भयवं ! कुकुडीओ, सा णं कुकुडी कओ ?, भंते ! अंडयाओ, एवामेव रोहा ! से य अंडए सा य कुक्कुडी, पुब्बिते पच्छापेते दुवेते सासया भावा, अणाणुपुब्बी एसा रोहा !। पुच्छि भंते! लोयंते पच्छा अलोयते पुवं अलोयंते पच्छा लोयंते 1, रोहा ! लोयते य अलोयंते य जाव अणाणुपुथ्वी एसा रोहा ! । पुब्बि भंते! लोयंते पच्छा सत्तमे उवासंतरे पुच्छा, रोहा ! लोयंते य सत्तमे उवासंतरे पुब्विपि दोवि एते जाव अणाणुपुथ्वी एसा रोहा !। एवं रोहक - अनगार कृत् विविध प्रश्नः एवं भगवतः उत्तराणि For Parts Use Only ~166~ १ शतके उद्देशः ६ रोहकपृच्छा लोकालोकादिकयोः पूर्वस्ये सू ५२ ॥ ८० ॥ snabrary org
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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