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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [७०३] दीप अनुक्रम [८४८] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्ति:) शतक [२४], वर्ग [-], अंतर् शतक [-] उद्देशक [१२] मूलं [ ७०३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः व्याख्या. प्रज्ञसिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥ ८३१॥ दसवाससह० उकोसेणं पलिओदनं सेसं तहेव || जइ जोइसियदेवेहिंतो उवव० किं चंदद्विमाणजोतिसिय| देवेहिंतो उवव० जाय ताराविमाणजोइसिय० ?, गोयमा ! चंदविमाणजाव ताराविमाण०, जोइसियदेवे णं भंते ! जे भविए पृढविकाइए लडी जहा असुरकुमाराणं णवरं एगा तेउलेस्सा प० तिन्नि णाणा तिन्नि अन्नाणा नियमं दिती जहनेणं अट्टभागपलिओवमं उक्कोसेण पलिओवमं वाससहस्सअमहियं एवं अणुवंधोवि कालादे० जह० अनुभागपलिओ मं अंतोमुत्तमम्भहियं उकोसेणं पलिओचमं वाससयसहस्सेणं | बावीसाए वाससहस्सेहिं अम्भहियं एवतियं० एवं सेसावि अट्ठ गमगा भाणिया नवरं ठितीं कालादे० जाणेजा ॥ जह वैमाणियदेवेहिंतो उउव० किं कप्पोवगवेमानिय० कप्पातीयवेमाणिय० १, गो० कष्पो | वगवेमाणिय० णो कप्पातीतवेमाणिय०, जड़ कप्पोवगवेमाणिय० किं सोहम्मकप्पोवगवेमाणिय जाव अक्षुकप्पोव गवेमा० १, गोयमा ! सोहम्मकप्पोवगवेमाणिय० ईसाणकप्पोवगवेमाणिय० णो सर्णकुमारजाव णो अयप्पोबगवेमाणिय०, सोहम्मदेवे णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएस उबव० ते णं भंते । केवलिया एवं | जहा जोइसियस्स गमगो णवरं ठिती अणुबंधो य जहनेणं पलिओवमं उक्कोसे० दो सागरोवमाई कालादे० | जह० पलिओचमं अंतोमुहुत्तमम्भहियं उकोसेणं दो सागरोवमाई बावीसाए बाससहस्सेहिं अमहियाई एवतियं कालं०, एवं सेसाबि अट्ठ गमगा भाणियता, गवरं ठिर्ति कालादेसं च जाणेजा। ईसाणदेवे णं भंते ! जे भविए एवं ईसाणदेवेणवि णव गमगा भाणि० नवरं ठिती अणुबंधो जहनेणं सातिरेगं पलिओ मं Education International For Pass Use Only ~1666~ २४ शतके उद्देशः १२ मनुष्येभ्यः पृथ्व्याउत्पादः सू ७०३ ||८३१॥ wor
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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