SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1642
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [६९८ ] दीप अनुक्रम [८४३] “भगवती”- अंगसूत्र-५ ( मूलं + वृत्ति:) शतक [२४], वर्ग [-] अंतर् शतक [-] उद्देशक [२] मूलं [ ६९८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः जहनेणं सातिरेगा पुचकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अन्महिया उपोसेणं सातिरेगाओ दो पुत्रकोडीओ एवतियं ४, सो चेव अपना जन्नकालद्वितीएस उचचज्जेज्जा एस चैव वत्तवया नवरं असुरकुमारहिं संवेह च जाणेज्जा ५, सो चैव उफोसकालहितीएस उवव० जह० सातिरेगपुधकोडिआइएस उकोसेणवि सा तिरेगपुयको| डीआरएस उववज्जेज्जा सेसं तं चैव नवरं कालादे० जह० सातिरेगाओ दो पुचकोडीओ उक्कोसेणचि सातिरेगाओ दो पुछकोडीओ एवतियं कालं सेवेला ६, सो चैव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीओ जाओ सो वेद पढमगमगो भाणियतो नवरं ठिती जनेणं तिन्नि पलिओ माई कोसेणवि तिनि पलिओ माई एवं अणुबंधोवि कालादे० जह० तिन्नि पलिओ माई दसहिं वाससहस्सेहिं अन्महियाई उकोसेणं छ पलिओ माई एवतियं ७, | सो चैव जहन्नकालद्वितीएस उबवन्नो एस चैव वत्तवया नवरं असुरकुमार द्विती संवेहं च जाणिजा ८, सो | चेव उक्कोसकालतीएसु उवबन्नो जह० तिपलिओ माई उक्कोसे० तिपलिओव० एस चैव वत्तवया नवरं | कालादेसेणं जह० छप्पलिओ माई एवतियं ९ ॥ जइ संखेजवासाज्यसन्निपचिदियजाव उबवति किं जलचर० एवं जाव पज्जत्तसंखेज्जवासाज्यसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए असुरकु० उ० से णं भंते! केवइयकालद्वितीएस उवव० १, गोयमा ! जह० दसवासद्वितीएस उक्कोसे० सातिरेगसागरोवमद्वितीएस उबव०, ते णं भंते । जीवा एगसमएणं एवं एतेसिं रयणप्पभपुढविगमग सरिसा नव गमगा शेयवा, नवरं जाहे अपणा जहनकालट्ठिइओ भवइ ताहे तिस्रुवि गमएस इमं णाणत्तं चत्तारि लेस्साओ Eucation International For Parts Only ~ 1641 ~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy