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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [-], मूलं [५४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५४१] है गाहमसुद्धणं ] तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं दाणेणं मए पडिलामिए समाणे देवाउए निबद्धे संसारे परित्तीकए। गिर्हसि य से इमाई पंच दिवाई पाउन्भूयाई, तंजहा-वसुधारा बुट्टा १ दसद्धचन्ने कुसुमे निवातिए २ लुक्खेवे कए ३ आयाओ देवदुंदुभीओ ४ अंतरावि य णं आगासे अहो दाणे ९सि धुढे, तए णं राय-18 गि नगरे सिंघाडगजाब पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खड़ जाव एवं परूवेइ-घी देवाणुप्पिया। विजए गाहावती कयत्थे णं देवाणुप्पिया ! विजये गाहावई कयपुन्ने णं देवाणुप्पिया। विजए गाहावई कयलक्षणे चं देवाणुप्पिया ! विजये गाहावई कया णं लोया देवाणुप्पिया । विजयस्स गाहावइस्स मुलद्धे देवाणुप्पिया माणुस्सए जम्मजीवियफले विजयस्स गाहावइस्स जस्सणं गिर्हसि तहारूवे साधु साधुरूवे पडिलाभिए समाणे इमाई पंच दिवाई पाउन्भूयाई, तंजहा-वसुधारा बुहा जाव अहो दाणे २ पुढे, तं धन्ने ४ कयत्थे कयपुले कयलक्खणे कया णं लोया सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले विजयस्स गाहावास्स विज०२।। दिएणं से गोसाले मंख लिपुत्ते बहुजणस्स अंतिए एयमदं सोचा निसम्म समुप्पासंसए समुप्पन्नकोउहल्ले | जेणेव विजयस्स गाहावइस्स गिहे तेणेव उवागच्छद तेणेव०२ पासइ विजयस्स गाहावइस्स गिहंसि वसुआहार घुई दसद्धवर्ष कुसुमं निवडियं ममं च णं विजयस्स गाहावइस्स गिहाओ पडिनिक्खममाणं पासति | हतुहे जेणेव मम अंतिए तेणेव उवाग.२ ममं तिक्खुसो आयाहिणपयाहिणं करेइ ९ममं वं० नम० २मम एवं क्यासी-तुझे णं भंते ! मम धम्मायरिया अहन्नं तुझं धम्मंतेवासी, तए णं अहं गोयमा! दीप अनुक्रम [६३९] गोशालक-चरित्रं ~ 1327~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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