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________________ आगम (०५) "भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [५०३-५०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५०३ -५०४] व्याख्या- गोयमा ! देवे वा से असुभे पोग्गले पक्खिवेजा, सेणं तेसिं असुभाणं पोग्गलाणं पक्खिवणयाए जक्खा- १४ शतके प्रज्ञप्तिः एसं उम्मादं पाखणेजा, मोहणिज्जरस वा कम्मस्स उदएणं मोहणिज उम्मायं पाउणेजा, से तेण?णं जाव 18२ उद्देश अभयदेवी उम्माए । असुरकुमाराणं भंते! कतिविहे उम्मादे पण्णते?, एवं जहेव नेरल्याणं नवरं देवेवासे महिडीयतराए यक्षावेशमो या वृत्तिः२ असुभे पोग्गले पक्खिवेज्जा से णं तेसिं असुभाणं पोग्गलाणं पक्खिवणयाए जक्खाएसं उम्मादं पाउणेजा होन्मादौ ॥३४॥ द्र मोहणिजस्स वा सेसं तं चेव, से तेणटेणं जाव उदएणं एवं जाव थणियकुमाराणं, पुढविकाइयाणं जाव मणु-13 जिनजन्माहस्साणं एएसिं जहा नेरइयाणं, चाणमंतरजोइसवेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं ॥(सूत्रं५०३) अस्थि गं भंते! पति पज्जन्ने कालवासी बुट्टिकायं पकरेंति !, हंता अस्थि ॥ जाहे णं भंते ! सके देविंदे देवराया चुहिकार्य काउकामे | |सू ५०४ भवति से कहमियाणि पकरेति ?, गोयमा ! ताहे चेव णं से सके देविंदे देवराया अम्भितरपरिसए देवे सदावेति, तए णं ते अम्भितरपरिसगा देवा सद्दाविया समाणा मज्झिमपरिसए देवे सदावेंति, तए णं ते मज्झिमपरिसगा देवा सद्दाविया समाणा बाहिरपरिसए देवे सद्दावेंति, तए णं ते बाहिरपरिसगा देवा ४ सद्दाविया समाणा बाहिरं वाहिरगा देवा सद्दावेंति, तए णं ते बाहिरगा देवा सदाविया समाणा आभि-31 र ओगिए देवे सहावेंति, तए ण ते जाव सद्दाविया समाणा बुडिकाए देवे सदावेंति, तए णं ते बुटिकाइया ||३॥ देवा सहाविया समाणा बुट्टिकार्य पकरेंति, एवं खलु गोयमा । सके देविंदे देवराया चुहिकार्य पकरेति ॥ अस्थि णं भंते ! असुरकुमारावि देवा बुट्टिकार्य पकरेंति, हंता अस्थि, किं पत्तिय भंते ! %45-45-45459-456-05-28-% दीप अनुक्रम [६००-६०१] SACHARYA ~ 1273~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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