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________________ आगम (०५) "भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [४७६-४८०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४७६ ॥६०६॥ -४८०] व्याख्या- 18 दस दिसाओ पवहति, तंजहा-पुरच्छिमा पुरच्छिमदाहिणा एवं जहा दसमसए नामधेजति (सूत्रं ४७९)॥ १३ शतके दाणे भंते ! दिसा किमादीया किंपवहा कतिपदेसादीया कतिपदेसुत्तरा कतिपदेसीया किंपज्जवसिया उद्देशः अभयदेवीकिंसंठिया पन्नत्ता, गोयमा ! इंदा णं दिसा रुयगादीया रुयगप्पवहा दुपएसादीया दुपएसुत्तरा लोग लोगनरकेवेदना नरक या वृत्तिः२ ४॥ पडच असंस्खेजपएसिया अलोग पहुच अणंतपएसिया लोगं पडच साईया सपज्जवसिया अलोग पहुंच कायादि सू साईया अपज्जवसिया लोग पहुंच मुरजसंठिया अलोगं पडुच्च सगडद्धिसंठिया पन्नत्ता । अग्गेयी गंभंते। ४७६-४७८ दिसा किमादीया किंपवहा कतिपएसादीया कतिपएसविकिछन्ना कतिपएसीया किंपज्जवसिया किंसंठिया पन्नत्ता, गोयमा ! अग्गेयी णं दिसा रुयगादीया रुयगप्पवहा एगपएसादीया एगपएसविच्छिन्ना ध्यं सू ४७९ अणुत्तरा लोगं पडुच असंखेज्जपएसीया अलोगं पडुच अणंतपएसीया लोग पहुंच साइया सपज्जव. अलोग दिशः पडुच साइया अपज्जवसिया छिन्नमुत्ताच लिसंठिया पण्णत्ता । जमा जहा इंदा, नेरइया जहा अग्गेयी, एवं सू ४८० जहा दा तहा दिसाओ चत्तारि जहा अग्गेई तहा चत्तारिवि विदिसाओ। विमला णं भंते ! दिसा | किमादीया, पुच्छा जहा अग्गेयीए, गोयमा ! विमला गं दिसा रुयगादीया रुपगप्पवहा चप्पएसादीया दुपएसविच्छिन्ना अणुत्तरा लोगं पडच सेसं जहा अग्गेयीए नवरं रुयगसंठिया पण्णत्ता एवं तमावि (४८०)||* स्पर्शद्वारे 'एवं जाव वणस्सइफासंति इह यावरकरणात्तेजस्कायिकस्पर्शसूत्र वायुकायिकस्पर्शसूत्रं च सूचितं, तत्र | च कश्चिदाह-ननु सप्तस्वपि पृथिवीषु तेजस्कायिकवर्जपृथिवीकायिकादिस्पर्शी नारकाणां युक्तः येषां तासु विद्यमानत्वात् दीप अनुक्रम [५७०-५७४] CAS ॥६०६॥ Hrwasaram.org ~ 1217~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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