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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१२], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [६], मूलं [४५३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: 4564564 प्रत सूत्रांक [४५३] |चंदस्स लेस्सं आवरेत्ताणं पच्चोसकइ तदा णं मणुस्सलोए मणुस्सा चदंति-एवं खलु राहणा चंदे वते, एवं०, जिदा णं राहू थागछमाणे वा ४ जाव परियारेमाणे वा चंदलेस्सं अहे सपक्खि सपडिदिसिं आवरेत्ताणं |चिट्ठति तदा मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति-एवं खलु राहणा चंदे घस्थे एवं०॥ कतिविहेणं भंते !राह पन्नत्ते? गोयमा ! दुबिहे राहू पन्नत्ते?, तंजहा-धुवराष्टू पचराहू य, तस्थ णं जे से धुवराह से णं बहुलपक्खस्स है |पाडिवए [अन्धाअम् ८०००] पन्नरसतिभागेणं पन्नरसइभागं चंदस्स लेस्सं आवरेमाणे २ चिट्ठति, तंजहापढमाए पढम भागं बितियाए बितियं भागं जाव पन्नरसेसु पन्नरसमं भाग, चरिमसमये चंदे रत्ते भवति अवसेसे समये चंदे रत्ते य विरत्ते य भवति, तमेव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे उव०२ चिट्ठति पढमाए पढम भागं जाव पन्नरसेसु पन्नरसमं भागं, चरिमसमये चंदे विरत्ते भवइ अवसेसे समये चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ, तस्थ णं जे से पबराहू से जहन्नेणं छण्हं मासाणं उक्कोसेणं बायालीसाए मासाणं चंदस्स अड*यालीसाए संवच्छराणं सूरस्स (सूत्रं ४५३) & 'रायगिहें'इत्यादि, 'मिच्छते एवमाहसुत्ति, इह तद्वचनमिथ्यात्वमप्रमाणकत्वात् कुप्रवचनसंस्कारोपनीतत्वाच, ग्रहणं हि राहुचन्द्रयोर्विमानापेक्षं, न च विमानयोगासकग्रसनीयसम्भवोऽस्ति आश्रयमात्रत्वान्नरभवनानामिव, अदं| गृहमनेन प्रस्तमिति दृष्टस्तव्यवहारः १, सत्यं, स खल्वाच्छाद्याच्छादकभावे सति नान्यथा, आच्छादनभावेन च ग्रासविवशायामिहापि न विरोध इति । अथ यवत्र सम्यक् तद्दशयितुमाह-'अहं पुणे'त्यादि ॥ 'खंजणवन्नाभे'त्ति खञ्जन दीप अनुक्रम [५४६] CREKARE - 1-964-64-950 - राहू, राहो: नव नामानि, राहूविमान, ग्रहण ~1156~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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