SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति प्रस्तावना विश्व की प्रमुख समस्याओं में से एक समस्या मानव-समाज की तनावग्रस्तता है। आज विश्व में न केवल अभावग्रस्त देश तनावग्रस्त हैं, अपितु जो विकसित देश हैं, वे भी उनसे अधिक तनावग्रस्त हैं। आज विश्व में संयुक्त राज्य अमेरिका को सबसे विकसित देशों में माना जाता है, किन्तु वहाँ की जनसंख्या में भी तनावग्रस्त लोगों का प्रतिशत सबसे अधिक है। विश्व में आज नींद की गोलियों की सबसे अधिक खपत संयुक्त राज्य अमेरिका में है। तनावग्रस्त व्यक्ति और समाज आज वैश्विक-शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। यदि विश्व में शांति की स्थापना करना है, तो मानव को तनावमुक्त करना होगा, क्योंकि तनावग्रस्त मानव विश्वशांति के लिए सबसे बड़ी समस्या है। आज विश्व को तनावमुक्त मानव-समाज की अपेक्षा है। सर्वप्रथम, इस बात पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि तनाव क्यों उत्पन्न होते हैं ? क्या भौतिक सुख-सुविधाओं के संसाधनों का अभाव ही तनावग्रस्तता का एकमात्र कारण है? वस्तुतः, व्यक्ति के तनावग्रस्त होने का मूलभूत कारण बाह्य सुख-सुविधा या भौतिक-संसाधनों की कमी नहीं है, अपितु इच्छाओं एवं अपेक्षाओं का बढ़ता हुआ स्तर तथा दूसरे के विकास को देखकर मन में ईर्ष्या की भावना तथा उसे नीचे गिराने की वृत्ति ही आज तनावों की उत्पत्ति के मूलभूत कारण प्रतीत होते हैं। यदि भौतिक सुख-सुविधाएँ और उनके संसाधनों की उपलब्धि ही तनावमुक्ति का मूलभूत आधार होता, तो आज विश्व के विकसित देशों का मानव-समाज तनावमुक्त होना चाहिए था। यदि हम देखें, तो भारत अमेरिका की अपेक्षा भौतिक सुख-सुविधा और भौतिक संसाधनों की दृष्टि से एक गरीब देश कहा जाएगा, किन्तु तनावग्रस्तता का प्रतिशत भारत की अपेक्षा अमेरिका में अधिक होना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि तनाव का जन्म केवल अभावों के कारण नहीं होता है, उसमें दूसरों के प्रति ईर्ष्या की भावना और इच्छाओं एवं आकांक्षाओं के उच्च स्तर ही इसमें प्रमुख रूप से कार्य करते हैं। वस्तुतः, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy