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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 283 तनाव हमारे जीवन के हर क्षेत्र में उत्पन्न होता है और उन्हीं क्षेत्रों में अगर हम अनेकांत का बीज डाल दें, तो सुख व शांति की फसल लहराएगी। अनेकांत विभिन्न क्षेत्रों में तनावप्रबंधन का कार्य करता है। विभिन्न क्षेत्रों में अनेकांतवाद की उपयोगिता - 1. अनेकांतवाद धार्मिक क्षेत्र में - सभी धर्मों का मूल लक्ष्य एक ही है - मोक्ष प्राप्त करना, भक्त से भगवान् बनना। अन्तर केवल इतना है कि रास्ते अलग-अलग हैं, किन्तु उन रास्तों पर चलने की प्रक्रिया भी एक ही है और वह है - राग, आसक्ति, अहं एवं तृष्णा को समाप्त करना। फिर भी, एकान्तवादीसोच आज हिंसा, कलह, अशांति एवं वैश्विक-तनाव का कारण बन गया है। प्राचीन समय से ही धर्म के नाम पर मानव मानवता का घात करता रहा है। डॉ. सागरमलजी जैन ने बड़े ही सुन्दर शब्दों में लिखा है -"धर्म मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने के लिए था, लेकिन आज वही धर्म मनुष्य-मनुष्य में विभेद की दीवारें खींच रहा है। 564 वस्तुतः, धर्म विश्वशांति और मानव-जाति में सहयोग व प्रेम भावना जाग्रत करने के लिए है, किन्तु धार्मिक-मतान्धता के कारण धर्म के नाम पर हिंसा, कलह एवं अत्याचार हो रहा है। इसके कई उदाहरण हमारे समक्ष आए हैं, जैसे- अयोध्या मंदिर का विवाद, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का विवाद आदि। . प्राचीन समय में ऐसे कई विवाद रहे थे, जिन्हें अनेकांत-दृष्टि से ही समाप्त किया गया था। हर व्यक्ति अपने धर्मदर्शन को सही व अन्य धर्मदर्शनों को मिथ्या मानता है। ऐसे में जब भी किसी बात को लेकर कोई विवाद खड़ा होता है, तो माहौल तनावग्रस्त बन जाता है। ऐसी स्थिति में अनेकांत दृष्टि ही उन दोनों वर्गों के बीच सामंजस्य बना . सकती है। अनेकांतदृष्टि दो धर्मों या तथ्यों को एक नहीं करती है, वस्तुतः, वह उनके सम्बन्ध में हमारी सोच को सम्यक् बनाती है। 2. मनोवैज्ञानिक-क्षेत्र में अनेकांतवाद - "जिस प्रकार वस्ततत्त्व विभिन्न गणधर्मों से यक्त होता है, उसी प्रकार से मानव-व्यक्तित्व भी विविध विशेषताओं और विलक्षणताओं का 564 अनेकान्तवाद, स्याद्वाद और सप्तभंगी (सिद्धांत और व्यवहार) – डॉ. सागरमल जैन, पृ.39 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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