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________________ 270 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 3. क्षायोपशमिक - क्षायोपशमिक शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है –'क्षय' और 'उपशम'। इस चारित्र में तनाव के कुछ कारणों का निराकरण अर्थात् क्षय हो जाता है और कुछ कारणों की सत्ता या उपस्थिति बनी रहती है, केवल उनके विपाक या उदय को कुछ समय के लिए रोक दिया जाता है। यही क्षायोपशमिक-चारित्र है। . .एक दृष्टि से, जैनदर्शन के तीन मूलभूत सिद्धान्त हैं - अपरिग्रह, अहिंसा और अनेकांत। हिंसा का कारण परिग्रह है, अतः यहाँ. मैंने प्रथम स्थान अपरिग्रह को दिया है। अपरिग्रह और तनावमुक्ति - . पदार्थ असीम हैं और उन्हें प्राप्त करने की इच्छाएँ या आकांक्षाएँ भी आकाश के समान असीम हैं। असीम को प्राप्त करने की चाह ही . तनाव है और संचयवृत्ति को सीमित करने का प्रयत्न व्यक्ति को तनावमुक्त करता है, अतः अपरिग्रह तनावमुक्त करता है एवं परिग्रह तनावयुक्त अवस्था का सूचक होता है। परिग्रह का अर्थ - परिग्रह शब्द परि + ग्रहण से मिलकर बना है। 'परि' शब्द का अर्थ विपुल मात्रा में और ग्रहण का अर्थ हैप्राप्त करना, संग्रह करना आदि, अतः परिग्रह का अर्थ है- विपुल मात्रा में वस्तुओं का : संग्रह करना। दूसरे शब्दों में कहें, तो पदार्थों का असीमित संग्रह परिग्रह है। जैनदर्शन के अनुसार, लोभ मोहनीय-कर्म के उदय से संसार के कारणभूत सचिताचित पदार्थों को आसक्तिपूर्वक ग्रहण करने की अभिलाषारूप क्रिया को परिग्रह कहा है। 533 उपासकदशांगसूत्र 534 में व्रती गृहस्थ के परिग्रहपरिमाण-व्रत को इच्छापरिमाण-व्रत भी कहा गया है। उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि पदार्थों के संचय करने की वृत्ति, आसक्तिपूर्वक संग्रह या संग्रह करने की इच्छा या अभिलाषा, लोभ की प्रवृत्ति आदि परिग्रह है और यही संचय करने की वृत्ति, आसक्ति, इच्छाएँ, आकांक्षाएँ या अभिलाषा आदि नियमतः तनाव उत्पत्ति के प्रमुख कारण हैं। 533 लोभोदयात्प्रधान भवकारणाभिएवंडगपूर्विका सचित्तेतर द्रव्योपादानक्रियैव संज्ञायतेऽनयेति परिग्रह संज्ञा-प्रज्ञापनासूत्र - 8/725 54 उपासकदशांग - 1/45 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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