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________________ 218 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति व्यक्ति अपने कार्य व व्यवहार का युक्ति से या तर्क से औचित्य स्थापित कर अपने तनाव को कम करता है। मनोवैज्ञानिक अरूणकुमार सिंह कहते हैं कि इस विधि से दो उद्देश्यों की पूर्ति होती है- "पहला तो यह कि जब व्यक्ति लक्ष्य पर पहुँचने में असमर्थ रहता है, तब इससे उत्पन्न कुंठा की गंभीरता को योक्तिकरण के द्वारा कम कर देता है तथा दूसरा यह कि औचित्य-थापना के द्वारा व्यक्ति अपने द्वारा किए गए व्यवहार के लिए एक स्वीकार्य अभिप्रेरक प्रदान करता है।" इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति ऐसे तर्क देता है, जिनको उपेक्षित नहीं किया जा सकता। ऐसा करके वह व्यक्ति अपने-आपको संतुष्ट कर अपना मानसिक तनाव कम करता है, जैसे- कोई कर्मचारी कार्यालय में देरी से पहुंचने पर यह कहता है कि ट्रैफिक जाम था। (ह) दमन - दमन का अर्थ है- दबाना। इसमें जब तनाव के कारण व्यक्ति चिन्ताओं, पुरानी स्मृतियों आदि से परेशान हो जाता है; या मानसिक रूप से जब वे अधिक कष्टकर प्रतीत होती हैं, तब वह उन चिन्ताओं को चेतन से निकालकर अचेतन में डाल देता है। वह तनाव उत्पन्न करने वाली इच्छाओं, आंकाक्षाओं को, जो पूरी नहीं हो सकती, उन्हें दबाने का या अचेतन में डालने का प्रयास करता है, ताकि वह किसी दूसरे कार्य में ध्यान दे सके। अरूणकुमार सिंह लिखते हैं- "दमन में व्यक्ति अपनी इच्छाओं एवं यादों से ही अवगत नहीं हो पाता है, वे गहरी विस्मृति में चली जाती हैं, किन्तु दमन में व्यक्ति को यह पता नहीं होता है कि वह कौन-कौनसी इच्छाओं एवं यादों को चेतन से अलग कर चुका है। दमन चेतना के स्तर से अचेतन में भेजने का प्रयास है, दूसरे शब्दों में वह उन्हें चेतना के स्तर से निकाल देने का प्रयत्न है। यद्यपि विस्मरण दोनों में ही होता है, किन्तु एक में ये इच्छाएँ अचेतन में बनी रहती हैं, जबकि दूसरे में निर्मूल हो जाती हैं। (य) प्रक्षेपण - तनाव को कम करने के लिए व्यक्ति अपनी गलतियों का, अपनी असफलताओं का जिम्मेदार किसी दूसरे व्यक्ति को या परिस्थितियों को बताता है। किसी दूसरे पर आरोप लगाने से उसे सन्तुष्टि एवं शांति मिलती है। व्यक्ति स्वयं की गलतियों को स्वीकार न करके अपने-आपको दोषमुक्त समझता है, जिससे उसे आत्म-संतोष होता है और उसका तनाव कम होता है, जैसे- छात्र परीक्षा में 417 आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान, अरूणकुमार सिंह, पृ. 263 418 आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान, अरूणकुमार सिंह, पृ. 263 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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