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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति समय और श्वास-प्रश्वास आधा मिनट से पांच मिनट । श्वास प्रश्वास करते समय संकल्प करें कि ऊर्जा (प्राण) शक्ति ओज रूप में परिणत होकर मस्तक में फैल रही है। स्मरण शक्ति विकसित होती जा रही है। 180 लाभ ब्रह्मचर्य की साधना में सहायक। इससे शरीर शक्तिसम्पन्न व तेजस्वी बनता है। - 8. सिद्धासन यह आसन साधना की सिद्धि को सहजता प्रदान करता है। इसलिए सिद्धासन कहलाता है। योग के चौरासी लाख आसनों में सिद्धासन को प्रमुख स्थान दिया गया है। सिद्धासन को ध्यान साधना एवं समाधि के लिए सर्वोत्तम माना गया है। - विधि आसन पर सुखपूर्वक बैठें। बाएँ पैर की एड़ी को गुदा एवं मूत्रेन्द्रिय के मध्य रिक्त स्थान पर लगाएँ । दाएं पैर को उठाकर बाएँ पैर के ऊपर वाले टखने पर टिकाएँ । मेरुदण्ड सीधा रहे। हाथ ब्रह्ममुद्रा में नाभि के पास टिकाएं। समय एक मिनट से धीरे-धीरे सुविधानुसार बढ़ाएं। Jain Education International - लाभ काम-शक्ति पर विजय, चित्त-वृत्ति का निरोध, वीर्य-शुद्धि, शक्ति - जागरण । सुषुम्ना में प्राण का संचार होने से व्यक्ति ऊर्ध्वरेता बनता है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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