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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति _145 . दूसरे, माया या कपटवृत्ति को एक अन्य अपेक्षा से चौर्यकर्म भी कहा गया है और चौर्यकर्म करने वाला व्यक्ति सदा भयभीत रहता है और सदा तनावग्रस्त रहता है, इसमें कोई वैमत्य नहीं है। अतः, मायारूपी कषाय भी तनाव का हेतु है। माया के चार प्रकार - अनंतानबन्धी-माया - यह तीव्रतम कपटाचार की स्थिति है। जितनी गहरी कपटवृत्ति होगी, उतना ही अधिक विश्वासघात होगा और उतना ही अधिक तनाव होगा। यह माया बांस की जड़ के समान होती है, जो कभी भी सीधी नहीं होती है। इस माया की स्थिति तीव्रतम होने के कारण तद्जन्य तनाव भी तीव्रतम स्थिति का होता है। अप्रत्याख्यानी-माया - ऐसी माया भैंस के सींग के समान कुटिल होती है। ऐसी माया में तनाव का स्तर अनन्तानुबन्धी की अपेक्षा कुछ कम होता है। ऐसी माया तीव्रतर होती है, अतः तदजन्य तनाव भी तीव्रतर ही होगा। . प्रत्याख्यानी-माया - गोमूत्र की धारा के समान कुटिल माया प्रत्याख्यानी-माया है। इस स्तर की माया में तनाव भी अपेक्षाकृत कम तीव्र ही होता है। . संज्वलन-माया - अल्प कपटाचार होने के कारण इससे तनाव तो होता है, किन्तु उसका स्तर भी मंद ही होता है। जिस प्रकार बांस का छिलका आसानी से मुड़ जाता है, उसी प्रकार ऐसी माया में विवाद आसानी से सुलझ जाते हैं। - तनावमुक्ति के लिए व्यक्ति को माया-कषाय से ऊपर उठना हह होगा। वस्तुतः, जहाँ मान और लोभ कषाय प्रमुख बनते हैं, वहां स्वतः कपट या माया-वृत्ति आ जाती है, इसलिए जैनधर्म में कहा गया है कि माया पर विजय सरलता या आर्जव-गुण से ही सम्भव है। यदि मानव को तनावमुक्त होना है, तो उसे माया या कपट-वृत्ति का त्याग करना होगा और अपने जीवन-व्यवहार में सरलता और सहजता लानी होगी। . लोभ – 'लोम शब्द लुभ् + धञ् के संयोग से बना है, जिसका अर्थ लोलुपता, लालसा, लालच, अतितृष्णा आदि हैं। 28 धन आदि की तीव्र 283 संस्कृत-हिन्दी कोश, भारतीय विद्या प्रकाशन, वाराणसी, पृ. 886 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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