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________________ 128 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति उपर्युक्त तीनों वेदों के अभिलाषारूपी भावों को. क्रमशः करीषाग्नि, तणाग्नि और नगरदाह के समान बताया गया है। इन तीनों वेदों का सम्बन्ध कामवासना से है। इन वासनाओं के उदय में इनकी पूर्ति न होने पर तनाव की उत्पत्ति होती है। यद्यपि ये वासनाएँ शरीरजन्य हैं, किन्तु इनका सम्बन्ध मनोवृत्तियों से भी है। भगवतीसूत्र में चारों कषायों के पर्यायवाची नामों से यह स्पष्ट हो जाता है कि इनमें से प्रत्येक कषाय का क्षेत्र अतिव्यापक है और ये विभिन्न रूपों में प्रकट होती हैं। इनके पर्यायवाची नामों से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि ये व्यक्ति को तनावग्रस्त बनाने में प्रमुख रूप से कार्य करती हैं। . जहाँ तक कर्म-साहित्य के ग्रन्थों का प्रश्न है, उनमें सोलह कषायों और नौ नोकषायों को मोहकर्म का ही एक विभाग माना गया है। अनंतानबंधी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी और संज्वलन -ये कषायों के चार भेद तनाव के स्तर को भी सूचित करते हैं। कषाय के प्रकार और स्तर के आधार पर कर्म-साहित्य के ग्रंथों में कर्मबंध की तीव्रता और मंदता का विचार किया गया है। जैन कर्मसिद्धान्त यह मानकर चलता है कि कषायों की अवस्था जितनी तीव्र या मन्द होगी, उसी के आधार पर कर्मबंध भी तीव्र या मंद होगा अथवा दीर्घकालिक या अल्पकालिक होगा। इस प्रकार, कषायों के स्तर को तनावों के स्तर के समान मान सकते हैं। चाहे कर्मों के बंध या उदय का प्रश्न हो, उनमें मुख्य रूप से कषायों का स्तर ही काम करता है। अतः, जैन-कर्मसिद्धांत का संक्षेप में निष्कर्ष यही है कि यदि तनाव से मुक्ति पाना है, तो व्यक्ति को कषायों से मुक्त होना होगा। कषाय के विभिन्न प्रकारों या स्तरों का तनाव से सह-सम्बन्ध - अनन्तानुबन्धी-कषाय - अनन्तानुबन्धी कषाय तनाव की वह प्रतिक्रियायुक्त तीव्रतम स्थिति है, जिसमें व्यक्ति तनावमुक्ति के बारे में सोच भी नहीं सकता है। वह मिथ्यादृष्टि से युक्त, घोर पापकर्म या दुष्ट प्रवृत्ति करने वाला अनन्तकाल तक संसार में भ्रमण करता है और सदैव तनावयुक्त बना रहता है। अनन्तानुबंधी-कषाय का उदय होने पर व्यक्ति का तनाव-स्तर कर्मग्रंथ, भाग-1, गाथा -22 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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