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________________ 466 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व स्वतंत्रता की प्राप्ति से भी है। मोनियर विलियम्स निर्वाण शब्द की व्याख्या करते हुए इसका अर्थ करते हैं- अन्तगत, शान्त, दृश्य, जीवन्मुक्त, पदार्थमुक्त, सर्वोच्च सत्ता से सम्बद्ध, समस्त इच्छाओं और विकारीभावों से मुक्त और परमानन्द प्राप्त ।085 ___ मोक्ष आध्यात्मिक-जीवन का अन्तिम सोपान है। मानव का धार्मिक और आध्यात्मिक-जीवन मोक्षमार्ग पर अग्रसर होकर ही प्रकाशमान् होता है। आत्मा और परमात्मा का तादात्म्य ही मोक्ष व परमानन्द की चरम अनुभूति है। जीव ब्रह्म में लीन होकर मोक्ष-पद को प्राप्त करता है। आत्मा का यही सच्चा ज्ञान मोक्ष है। धर्म और मोक्ष एक-दूसरे के साधन और साध्य के रूप में सम्पृक्त हैं। एक मार्ग है, दूसरा फल, एक उपाय है, दूसरा गंतव्य । गंतव्य अर्थात् मोक्ष वह प्रयोजन है, जिस तक केवल धर्मरूपी मार्ग द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। मोक्ष केवल वे ही प्राप्त कर सकते हैं, जो धर्म-मार्ग पर चलते हैं। जैनदर्शन में मार्ग और मार्ग-फल- इन दो अवधारणाओं में अन्तर किया गया है। धर्म मोक्ष का उपाय है और इसीलिए मोक्षमार्ग है। जो व्यक्ति सम्यक मार्ग पर चलता है, वही अन्ततः मोक्ष प्राप्त करता है। इस मार्ग (धर्म) के अनुसरण के फलस्वरूप ही निर्वाण संभव हो सकता है। 1086 जैनदर्शन में समत्व को धर्म कहा गया है। जो धर्म है, वही समत्व है। 1087 तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वाति कहते हैं कि बंध के कारणों का अभाव हो जाने और निर्जरा होने से कर्मों का अत्यन्त अभाव हो जाना, उनका संपूर्णतः नष्ट हो जाना, मोक्ष है।1088 वस्तुतः, मोक्ष अकेला पाने की वस्तु नहीं है। इस संबंध में विनोबा भावे के उद्गार विचारणीय हैं -"जो समझता है कि मोक्ष अकेले हथियाने की वस्तु है, वह उसके हाथ से निकल जाता है, 'मैं' के आते ही मोक्ष भाग 1085 1086 1087 Monier Miner-Williams, A Sanskrit English Dictionary, P.P.834-35 समणसुत्तं, पृ. 229 वही, पृ. 274-275 बंधहेत्वभावनिर्जराभ्याम् कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः।- तत्त्वार्थसूत्र -10/2-3 1088 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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