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________________ 302 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व 7. कलह - क्रोध में अत्यधिक अनुचित शब्द या अनुचित भाषण करना कलह कहलाता है। इसे सामान्य रूप से वाकयुद्ध कहा जाता है। सामान्य से प्रसंगों में भी अपने स्वार्थ की हानि होने पर क्रोधाविष्ट होकर कई व्यक्ति अविवेकपूर्ण, अनर्गल, उत्तेजक शब्दों में बोलना प्रारम्भ कर देते हैं - यह कलह है। 8. चाण्डिक्य - क्रोध में उग्र रूप धारण करना, सिर पीटना, बाल नोंचना, अंग-भंग करना आत्महत्या करना, चाण्डिक्य-क्रोध की परिणतियाँ हैं। 9. मंडन - दण्ड, शस्त्र आदि-से युद्ध करना मंडन है। 615 चाण्डिक्य में क्रोधावस्था में स्वयं को कष्ट दिया जाता है एवं मंडन में दूसरों पर प्रहार होता है। मुंहमांगा दहेज न लाने पर क्रोध में भरकर कई बहओं को जला दिया जाता है। लूटपाट में बाधक बनने पर कई लोगों को लुटेरे गोली का निशाना बना देते हैं। कई बार क्रोधावेश में पति, पत्नी की हत्या कर देता है आदि। 10. विवाद - परस्पर विरुद्ध वचनों का प्रयोग करना या पक्ष-विपक्ष में उत्तेजक वार्तालाप होना विवाद है। ‘कसायपाहुड' में वृद्धि' एवं 'झंझा' आदि को क्रोध का पर्यायवाची बताया गया है।616 वृद्धि - कलह, वैर आदि की वृद्धि करने वाली प्रवृत्ति/व्यवहार करना वृद्धि है, जैसे -अपने विरोधी को जानबूझकर चिढ़ाना आदि। 015 भगवतीसूत्र, अभयदेवसूरि वृत्ति, श. 12, उ.5, सूत्र 2 ° कसायपाहुड चू, अ 9, गाथा 33 का अनुवाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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