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________________ 16 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व __(1) प.पू. गणाधीष आचार्य भगवन्त श्री जिन कैलाशसागर सूरिजी म.सा. एवं प.पू. उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मरुधरमणि गुरुदेव श्री मणिप्रभ सागरजी म.सा. के आशीर्वाद से यह शोधप्रबन्ध निर्विघ्न सम्पन्न हुआ। प.पू. आचार्य भगवन्त विजय शीलचन्द्रसूरिजी म.सा. की असीम कृपा एवं सम्यक् मार्गदर्शन, जो समय-समय पर मिलता रहा है, उनके उपकारों के प्रति नतमस्तक हूँ। उनका वरद हस्त मुझ पर सदा-सदा बना रहे... । (2) जिनका उपकार अविस्मरणीय है, उन जन्मदात्री मातश्री किरणबाला एवं धर्मानुरागी पिताश्री अभयकुमारजी भाण्डावत को मैं कैसे विस्मृत कर सकती हैं, जिनका वात्सल्यमय अनुराग मेरे अन्तरंग में प्राणऊर्जा बनकर प्रवाहित होता रहा है। (3) सादर कृतज्ञ हूँ, सरलहृदयी समाजरत्न श्री वंसराजजी सा. भंसाली (अहमदाबाद), दानवीर संघवी श्री तेजराजजी गुलेच्छा (बैंगलोर), श्री वीरचन्दजी भाण्डावत, श्री मनोजजी नारेलिया (शाजापुर), श्री नरपतजी कानूगो (हैदराबाद), श्री राकेशजी बोहरा (उज्जैन), मुमुक्षु मीना छाजेड़, सांसारिक बहना रुचिका, रेखा और भाई अभिषेक का अपूर्व सहयोग प्राप्त हुआ, अतः अन्तर्मन से ये सभी साधुवाद के पात्र हैं। उनका अपनत्व आप्लावित स्नेह सदा इस कृति के साथ जुड़ा रहेगा। (4) स्वाध्याय रसिक, सहज-सरल व्यक्तित्व के धनी विद्वद्वर्य डॉ. ज्ञानजी जैन (चैन्नई), सुश्रावक श्रीयुत नवीनचन्दजी सावनसुखा (इन्दौर) को भी हार्दिक आभार ज्ञापित करती हूँ, जिन्होंने समय की अल्पता और अत्यन्त व्यस्तता में भी मेरे निवेदन को सहर्ष स्वीकार कर अपनी पैनी नजर से शोध-प्रबन्ध का अवलोकन कर कुशल सम्पादन में जो सहयोग दिया, वह अनुमोदनीय है। श्रुत सेवा का श्रेष्ठ कार्य सदा स्मरणीय रहेगा...। (5) वैसे तो शाजापुर मेरा मूल वतन है, यहाँ के सभी स्वजन-परिजन मेरे अपने हैं, फिर भी 'शाजापुर श्रीसंघ के सदस्यों की आत्मीय स्मृतियाँ इस श्रुतसाधना में सहयोगी रही हैं। (6) 'मध्यप्रदेश की काशी' के नाम से प्रसिद्ध, प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य स्थित सुरम्य 'प्राच्य विद्यापीठ' का विशाल पुस्तकालय एवं सुविधाएंयुक्त शान्त वातावरण, इस लक्ष्य की प्राप्ति में सर्वाधिक सहायक, सिद्ध हुआ है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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