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________________ 122 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व भयभीत होता है, फिर उसे मारने का विचार करता. है, इसलिए कहा है - 'भयभीत व्यक्ति किसी का सहायक नहीं हो सकता। 177 2. भय का दूसरा दुष्परिणाम यह है कि जिसके प्रति भय होता है. उसके प्रति विश्वास का भाव समाप्त हो जाता है। 3. भय के परिणामस्वरूप न केवल व्यक्ति का मनोवैज्ञानिक-पक्ष प्रभावित होता है, अपितु उसका दैहिक-पक्ष भी प्रभावित होता है। वह अपने शरीर से विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करता है, जैसे -- चिल्लाना, रोना, भागना आदि। 4. मनोवैज्ञानिकों के अनुसार भय-संवेग पलायनवादिता से जुड़ा हुआ है। व्यक्ति जिससे और जहाँ से भयभीत होता है, वहाँ से भाग जाना चाहता है। 5. भयभीत व्यक्ति अपनी सुरक्षा के प्रयत्न करता है और उसके लिए वह विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का संचय भी करता है। आज विश्व में जो अस्त्र-शस्त्रों की अंधी दौड़ चल रही है, उसके पीछे मूलभूत कारण भय ही है। 6. भयभीत व्यक्ति जिससे भी भय रखता है, उसके प्रत्येक व्यवहार को शंका की दृष्टि से देखता है। वह यह सोचता है कि वे लोग मेरे लिए षडयंत्र रच रहे हैं। 7. भय व्यक्ति के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। भयभीत व्यक्ति चाहे अपने स्वास्थ्य के प्रति कितना भी सजग रहे, वह निरन्तर शक्तिहीन होता जाता है। उसके अपने दैहिक-पोषण के सारे प्रयत्न निरर्थक हो जाते हैं। इस संदर्भ में एक कथा प्रचलित है -किसी राजा ने किसी व्यक्ति को यह निर्देश दिया कि मैं तुम्हें यह बकरा देता हूँ, इसके सम्यक् पोषण का प्रयत्न हो, पर ध्यान रहे कि वह मोटा न हो। उस व्यक्ति ने इस हेतु उपाय सोचा, वह उसे अच्छा भोजन देता, पर उसने उस बकरे के पिंजरे के सामने शेर का पिंजरा रखवा दिया। इससे वह बकरा (जीव) सदा भयभीत 177 भीतो अवितिज्जओ मणुस्सो। - प्रश्नव्याकरणसूत्र- 2/2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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