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________________ ३८ प्रज्ञापना सूत्र उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय अनन्त प्रदेशी कही गई है। पुढवीकाइयाणं भंते! फासिंदिए कई पएसोगाढे पण्णत्ते ? गोयमा! असंखिज्ज पएसोगाढे पण्णत्ते । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय कितने प्रदेशों में अवगाढ कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ कही गई है। एएसि णं भंते! पुढवीकाइयाणं फासिंदियस्स ओगाहणट्टयाए पएसट्टयाएं ओगाहण - पएसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवे पुढवीकाइयाणं फासिंदिए ओगाहणट्टयाए, से चेव पएसट्टयाए अनंतगुणे । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय, अवगाहना की अपेक्षा और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा सबसे कम है, प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्त गुणी अधिक है । पुढवीकाइयाणं भंते! फासिंदियस्स केवइया कक्खड गरुय गुणा पण्णत्ता ? गोयमा! अनंता एवं मउय लहुय गुणा वि । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश - गुरु-गुण कित कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश गुरु गुण अनन्त कहे गये हैं । इसी प्रकार उसके मृदु-लघु गुणों के विषय में भी समझना चाहिए । एएसि णं भंते! पुढवीकाइयाणं फासिंदियस्स कक्खड गरुय गुणाणं मउय लहुय गुणाणं च कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पुढवीकाइयाणं फासिंदियस्स कक्खड गरुय गुणा, तस्स चेव मउय लहुय गुणा अनंतगुणा । एवं आउकाइयाणं वि जाव वणप्फइकाइयाणं, वरं संठाणे इमो विसेसे दट्ठव्वो- आउकाइयाणं थिंबुग बिंदु संठाणसंठिए पण्णत्ते । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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