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________________ अठारहवाँ कायस्थिति पद - काय द्वार २५५ कायस्थिति समझना चाहिए। जिनके असंख्याता (औदारिक) शरीर एकत्रित होने पर दृष्टि गोचर हो सकते हैं। ऐसे आलू प्याज आदि कन्दमूलों को साधारण वनस्पतिकाय कहा जाता है। बायर तसकाइए णं भंते! बायरतसकाइएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखिज्जवासमब्भहियाइं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बादर त्रसकायिक बादर त्रसकायिक के रूप में कितने काल तक रहता है? उत्तर - हे गौतम! बादर त्रसकायिक जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातवर्ष अधिक दो हजार सागरोपम तक बादर त्रसकायिक-पर्याय वाला बना रहता है। विवेचन - पूर्व में आये हुए "त्रसकायिक" एवं यहाँ पर आये हुए "बादर त्रसकायिक" दोनों शब्द एकार्थक हैं किन्तु यहाँ पर बादरों के बोलों का वर्णन होने से अन्य बोलों के साथ-साथ इस बोल के भी बादर विशेषण लगा दिया गया है। यह बादर विशेषण 'स्वरूप दर्शक' विशेषण समझना चाहिए। एएसिं चेव अपज्जत्तगा सव्वे वि जहण्णेणं वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं। भावार्थ - इन पूर्वोक्त सभी बादर जीवों के अपर्याप्तक जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त काल तक अपने-अपने पूर्व पर्यायों में बने रहते हैं। बायरपज्जत्तए णं भंते! बायरपज्जत्तए त्ति पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवम सयपहत्तं साडरेगं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बादर पर्याप्तक, बादर पर्याप्तक के रूप में कितने काल तक बना. रहता है? उत्तर - हे गौतम! बादर पर्याप्तक जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक शत सागरोपम पृथक्त्व तक बादर पर्याप्तक के रूप में रहता है। बायर पुढविकाइय पज्जत्तए णं भंते! बायर० पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखिजाइं वाससहस्साइं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक कितने काल तक बादर पृथ्वीकायिक । पर्याप्तक रूप में रहता है? उत्तर - हे गौतम! बादर पृथ्वीकायिक जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हज़ार वर्षों तक बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक रूप में रहता है। • एवं आउकाइए वि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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