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________________ १३२ से किं तं सिद्ध खेत्तोववाय गई ? सिद्ध खेत्तोववाय गई अणेगविहा पण्णत्ता । तंजहा - जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवयवासे सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंत सिहरिवासहर पव्वय सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, जंबुद्दीवे दीवे हेमवय हेरण्णवयवास सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, जंबुद्दीवे दीवे सद्दावर वियडावड़ वट्टवेयड्ढ सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंत रुप्पि वासहरपव्वय सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, जंबुद्दीवे दीवे हरिवास रम्मगवास सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, जंबुद्दीवे दीवे गंधावाइ मालवंत पव्वय वट्टवेयड्ड सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, जंबुद्दीवे दीवे णिसह णीलवंत वासहरपव्वय सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, जंबुद्दीवे दीवे पुव्व विदेह अवरविदेह सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, जंबुद्दीवे दीवे देवकुरु उत्तरकुरु सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, जंबुद्दीवे दीवे मंदरपव्वयस्स सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, लवणे समुद्दे सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, धायइसंडे दीवे पुरिमद्ध पच्यत्थिमद्ध मंदरपव्वय सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, कालोय समुद्दे सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, पुक्खरवर दीवद्धपुरत्थिमद्ध भरहेरवयवास सपक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, एवं जाव पुक्खरवर दीवद्ध पच्छिमद्ध मंदर पव्वयस पक्खि सपडिदिसिं सिद्ध खेत्तोववाय गई, से तं सिद्ध खेत्तोववाय गई ५ ॥ ४६९ ॥ कठिन शब्दार्थ - सपक्खिं सपक्ष (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण रूप पार्श्व), सपडिदिसिं - सप्रतिदिक्-विदिशाओं से युक्त । प्रज्ञापना सूत्र — Jain Education International भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वह सिद्ध क्षेत्रोपपात गति कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! सिद्ध क्षेत्रोपपात गति अनेक प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार हैंजम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत और ऐरवत वर्ष (क्षेत्र) में सब दिशाओं में, सब विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में क्षुद्र (लघु) हिमवान् और शिखरी वर्षधरपर्वत में सब दिशाओं में और विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में हैमवत और हैरण्यवत वर्ष में सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में शब्दापाती और विकटापाती वृत्तवैताद्यपर्वत में समस्त दिशाओं - विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपात गति For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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