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________________ ४८ प्रज्ञापना सूत्र ******************************************************** * * * * ** मृत्यु के बाद जीव अपने उत्पत्ति स्थान में पहुंच कर कार्मण शरीर द्वारा पुद्गलों को ग्रहण करता है और उनके द्वारा यथायोग्य सभी पर्याप्तियों को बनाना शुरू कर देता है। जीव के आहार पर्याप्ति एक समय में पूर्ण होती हैं। फिर शरीर पर्याप्ति आदि शेष पर्याप्तियां क्रमशः एक एक अन्तर्मुहूर्त में पूर्ण होती हैं। इस प्रकार सभी पर्याप्तियों का समय मिला देने पर भी अन्तर्मुहूर्त ही होता है क्योंकि अन्तर्मुहूर्त के असंख्यात भेद होते हैं। इन छह पर्याप्तियों में से एकेन्द्रिय जीव के आहार, शरीर, इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास ये चार पर्याप्तियां होती हैं। विकलेन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय के आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास और भाषा ये पांच पर्याप्तियां होती है। संज्ञी पंचेन्द्रिय के छहों पर्याप्तियां होती हैं। . सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जिन जीवों की पर्याप्तियाँ पूर्ण हो चुकी हैं वे पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। यहाँ मूल में प्रयुक्त "च" शब्द लब्धि:पर्याप्त और करण पर्याप्त रूप दो भेदों का सूचक है। जिन सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों ने स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण नहीं की है वे अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। यहाँ भी 'च' शब्द करण और लब्धि निमित्त, करण अपर्याप्त और लब्धि अपर्याप्त ऐसे दो भेदों का सूचक है। अर्थात् सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त लब्धि और करण के भेद से दो प्रकार के हैं उनमें जो अपर्याप्त अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं वे लब्धि अपर्याप्त और जिन्होंने अभी शरीर, इन्द्रिय आदि पर्याप्तियाँ पूरी की नहीं हैं किन्तु अवश्य पूर्ण करेंगे वे करण अपर्याप्त कहलाते हैं। यह सूक्ष्म पृथ्वीकायिक का वर्णन हुआ। जीव पर्याप्त अवस्था में और अपर्याप्त अवस्था दोनों में मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। किन्तु तीन पर्याप्तियों को पूर्ण करके अर्थात् आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति इन तीन पर्याप्तियों को पूरी करके चौथी पर्याप्ति (श्वासोच्छ्वास) को पूर्ण बान्धे बिना मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। अर्थात् तीन पर्याप्तियों को पूर्ण बान्धे बिना कोई भी जीव की मृत्यु नहीं हो सकती है। से किं तं बायर पुढवी काइया? बायर पुढवी काइया दुविहा पण्णत्ता। तंजहासण्ह बायर पुढवी काइया य खर बायर पुढवी काइया य॥१५॥ भावार्थ - प्रश्न - बादर पृथ्वीकायिक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - बादर पृथ्वीकायिक दो प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - १. श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकायिक और २. खर बादर पृथ्वीकायिक। विवेचन - जिन बादर पृथ्वी के जीवों का शरीर पीसे हुए आटे आदि के समान, श्लक्ष्ण-मृदु (मुलायम) है, वे श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। जिन बादर पृथ्वी के जीवों का शरीर खरकठोर हैं वे खर बादर पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। जो पृथ्वी कोमल (मृदु) तथा पानी सोखने की क्षमता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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